चंद्र ग्रहण और गणपति प्रसाद का शुद्धिकरण
ग्रहण के विषय में पूर्ण जानकारी

*चंद्र ग्रहण और गणपति प्रसाद*
गणपति पर बनाए प्रसाद को क्या सोमवार को भी वितरित कर सकते हैं जबकि रविवार को चंद्र ग्रहण है और उससे पहले बनाया प्रसाद सूतक में आ जाएगा तो इसे कैसे शुद्ध किया जा सकता है या सूतक से बचाया जा सकता है?
/////////// उत्तर /////////
बहुत अच्छा प्रश्न है। क्योंकि हर वर्ष गणपति विसर्जन के बाद पूर्णिमा से पितृ पक्ष शुरू हो जाते हैं और अनंत चतुर्दशी का प्रसाद अगले 2-3 दिन तक बंटता रहता है। परन्तु इस बार पूर्णिमा को चंद्र ग्रहण है और रविवार को दोपहर से ही सूतक लगने के कारण प्रसाद अशुध्द हो जाता है। ऐसे में क्या किया जाय,? इसका उत्तर यहाँ विस्तार से दिया जा रहा है।
हिंदू परंपरा और शास्त्रों के अनुसार ग्रहण (चंद्र या सूर्य) के समय सूतक (अपवित्र काल) लगता है। सूतक में बने हुए या खुले रखे हुए भोजन/प्रसाद अशुद्ध माने जाते हैं।
प्रश्न का समाधान:
1. ग्रहण और सूतक का प्रभाव
चंद्र ग्रहण से 9 घंटे पहले सूतक प्रारंभ हो जाता है।
इस दौरान बनाया या रखा भोजन सामान्यतः ग्रहण के बाद त्याज्य (त्यागने योग्य) माना जाता है।
2. यदि प्रसाद पहले से बनाया हुआ है तो उसके रखने के तरीके से उसकी शुद्धता का निर्धारण कर सकते हैं।
यदि प्रसाद सूतक में बना हुआ या रखा हुआ है तो ऐसे प्रसाद को ग्रहण के बाद उपयोग नहीं करना चाहिए।
लेकिन यदि पहले से बने प्रसाद को तुलसी पत्र, कुश (दूब), या तुलसी की पत्ती डालकर ढक कर रखा जाए, तो वह ग्रहण से प्रभावित नहीं माना जाता। यह परंपरा में बताया गया उपाय है।
साथ ही प्रसाद को ढककर, बंद पात्र (स्टील/पीतल/ताम्बा/कांच) में रखकर रखने से भी ग्रहण का प्रभाव कम होता है।
3. प्रसाद को शुद्ध करने का तरीका
यदि पहले से बना प्रसाद सूतक में आ गया हो, तो परंपरानुसार उसे पुनः ग्रहण के बाद गंगाजल, तुलसी पत्र, मंत्रोच्चार (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय / ॐ गणपतये नमः) के साथ शुद्ध करके ग्रहण किया जा सकता है।
फिर भी अधिकांश परंपराओं में इसे न खाने की ही सलाह दी जाती है, और ग्रहण के बाद नया प्रसाद बनाने को श्रेष्ठ माना गया है।
4. एक व्यावहारिक सुझाव
अगर सोमवार को वितरण करना है, तो रविवार को (ग्रहण से पहले) बनाया प्रसाद बचाने के लिए उसमें तुलसी पत्र डालकर बंद पात्र में रख दें।
या फिर ग्रहण समाप्त होने के बाद सोमवार सुबह नया प्रसाद बनाकर वितरित करें — यह सबसे उत्तम और शुद्ध तरीका होगा।
निष्कर्ष:
सबसे अच्छा उपाय: सोमवार को ही ताजा प्रसाद बनवाना।
यदि यह संभव न हो तो रविवार को बने प्रसाद को तुलसी पत्र डालकर और ढककर रखें, और ग्रहण के बाद गंगाजल छिड़ककर शुद्धि करके वितरण कर सकते हैं।
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*ग्रहण में भोजन/प्रसाद को सुरक्षित और शुद्ध रखने के पारंपरिक उपायों की पूरी सूची, ताकि भविष्य में भी इसका उपयोग कर सकें:*
ग्रहण में भोजन व प्रसाद को बचाने के उपाय
1. तुलसी पत्र (Tulsi Leaves)
किसी भी पकवान, प्रसाद, दूध, दही, मिठाई, पानी आदि में तुलसी पत्र डाल देने से वह ग्रहण से प्रभावित नहीं होता। क्योंकि तुलसी में एंटी बेक्टिरियल तत्व होते हैं जो खाद्य पदार्थ को ग्रहण में दूषित होने से बचाते हैं। इसीलिए,
तुलसी को शास्त्रों में अत्यंत पवित्र और शुद्धिकारक माना गया है।
2. कुश/दूर्वा (Kusha/Durva Grass)
प्रसाद या खाद्य पदार्थ में कुश डालकर ढक कर रखने से भी सूतक का प्रभाव नहीं पड़ता।
इसे वैदिक काल से ग्रहण रक्षा के लिए प्रयोग किया जाता है।
3. गंगाजल (Ganga Jal)
यदि पहले से बने भोजन पर गंगाजल छिड़क दिया जाए, तो उसका पवित्रत्व बना रहता है।
ग्रहण के बाद भी प्रसाद/भोजन पर गंगाजल छिड़क कर शुद्ध किया जा सकता है।
4. भोजन ढककर रखना
जो भी प्रसाद बनाया गया है, उसे ढक्कन लगे पात्र (काँच, स्टील, पीतल या चांदी) में रखें।
खुले में रखा भोजन ग्रहण से अधिक प्रभावित होता है।
5. मंत्रोच्चार से शुद्धि
ग्रहण के बाद यदि प्रसाद उपयोग करना हो, तो उस पर
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
या “ॐ गणपतये नमः”
का जप करके गंगाजल छिड़कें।
6. ग्रहण के बाद नया प्रसाद बनाना (श्रेष्ठ उपाय)
शास्त्रों में ग्रहण के बाद ताजा भोजन और प्रसाद बनाने को सर्वोत्तम माना गया है।
इसलिए यदि संभव हो तो सोमवार सुबह ही नया प्रसाद तैयार करें।
*आने वाले रविवार के चंद्र ग्रहण का सही समय (सूतक शुरू व समाप्ति सहित)*
*विशेष रूप से मुंबई (आइएसटी) समयानुसार*
*1. ग्रहण (चंद्र ग्रहण) की तिथियाँ और समय (मुंबई, IST)*
भारत में पूर्ण चंद्र ग्रहण (Blood Moon) रविवार, 7 सितंबर 2025 की रात से सोमवार, 8 सितंबर 2025 की सुबह तक दिखाई देगा:
पेनुम्ब्रल चरण (छाया प्रारंभ): 8:58 PM, 7 सितंबर
उम्ब्रल चरण (आंशिक ग्रहण प्रारंभ): 9:57 PM, 7 सितंबर
पूर्ण ग्रहण (Totality प्रारंभ): 11:00 PM, जब चंद्रमा पूरी तरह लाल दिखाई देगा
ग्रहण का सर्वोच्च (Maximum Eclipse): लगभग 11:41 PM
पूर्ण ग्रहण समाप्त: 12:22 AM, 8 सितंबर
आंशिक ग्रहण समाप्त: 1:26 AM, 8 सितंबर
पेनुम्ब्रल चरण समाप्त: 2:25 AM, 8 सितंबर
कुल ग्रहण अवधि: लगभग 3 घंटे 30 मिनट
पूर्ण ग्रहण अवधि (Totality): लगभग 1 घंटा 23 मिनट
*2. सूतक काल (Sutak Kaal) — ग्रहण पूर्व पवित्रता काल*
परंपरागत रूप से, सूतक काल ग्रहण से पूर्व ही शुरू हो जाता है और ग्रहण समाप्त होने के बाद तक चलता है।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) की रिपोर्ट के अनुसार:
उम्ब्रल चरण शुरू (अर्थात ग्रहण की आधिकारिक शुरुआत): 9:57 PM IST
कुछ परंपराओं में, सूतक काल इससे पहले—कुछ घंटों पहले से—शुरू माना जाता है।
पूर्ण ग्रहण समाप्ति: 12:22 AM
पूरे ग्रहण का समाप्ति (पेनुम्ब्रल खत्म): 2:25 AM
इसलिए, यदि आपने रविवार (7 सितंबर) को शाम तक प्रसाद बना लिया है, तो ग्रहण की शुरुआत (9:57 PM) से पहले सबकुछ करना चाहिए — क्योंकि उसके बाद बनाए गए प्रसाद सूतक का प्रभाव लेकर अशुद्ध माना जाएगा।
3. क्या कर सकते हैं?
स्थिति सुझाव
रविवार शाम ग्रहण से पहले प्रसाद बनाना तुलसी पत्र, कुश (दूर्वा) आदि डालकर, किसी बंद पात्र में ढककर रखें। फिर ग्रहण समाप्ति (12:22 AM या 2:25 AM) के बाद गंगाजल से शुद्ध करें और फिर वितरण करें।
सोमवार सुबह नया प्रसाद बनाना (शास्त्रसिद्ध रूप से श्रेष्ठ) ग्रहण पश्चात नया ताजा प्रसाद तैयार करें और वितरित करें। इससे शुद्धता सुनिश्चित रहती है।
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सूतक संबंधित और ग्रहण से जुड़ी परंपरागत सावधानिया
सूतक काल में क्या करें और क्या न करें
क्या न करें (निषेध)
1. भोजन न करें – सूतक काल और ग्रहण के समय भोजन, पानी पीना, फल आदि ग्रहण करना वर्जित है।
2. मूर्ति स्पर्श न करें – मंदिर के द्वार बंद रहते हैं, देवी-देवताओं की पूजा, आरती, और भोग वर्जित है।
3. सोना/शयन न करें – विशेषकर ग्रहण के दौरान सोना अनुचित माना गया है।
4. सुई, कैंची, धारदार वस्तुओं का उपयोग न करें – गर्भवती महिलाओं को विशेष सावधानी दी जाती है।
5. नवीन कार्य (शुभ कार्य) न करें – जैसे विवाह, गृह प्रवेश, पूजा-अर्चना आदि।
✅ क्या करें (अनुशंसित)
1. जप-ध्यान करें – ग्रहण का समय मंत्रजप, ध्यान, और भक्ति के लिए अत्यंत शुभ माना गया है।
उदाहरण: ॐ नमः शिवाय, ॐ गणपतये नमः, ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
2. स्नान करें – ग्रहण से पहले और ग्रहण समाप्ति के बाद स्नान करके शुद्ध हों।
3. दान करें – ग्रहण के समय और बाद में अन्न, वस्त्र, दक्षिणा आदि दान करने का विशेष महत्व है।
4. गंगाजल छिड़कें – ग्रहण समाप्ति के बाद घर, रसोई और भोजन सामग्री पर गंगाजल छिड़कें।
5. मंदिर में पूजा पुनः आरंभ करें – ग्रहण समाप्ति और स्नान के बाद ही मंदिर के द्वार खोले जाते हैं और पुनः पूजा की जाती है।
सारांश:
सूतक काल रविवार 7 सितम्बर रात 9:57 बजे से शुरू होगा और 8 सितम्बर तड़के 2:25 बजे तक चलेगा।
इस दौरान कोई नया कार्य, भोजन, पूजा न करें।
ग्रहण पश्चात स्नान + गंगाजल छिड़काव करके शुद्धि करें।
अंत में गौशाला के लिए यथाशक्ति दान दें।
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