दीपावली पर भाग्योदय, लक्ष्मी सिद्धि, धनवर्षा, ग्रह-शान्ति और रिश्तों में मिठास के 11 सूत्र
ऋषिश्री वरदानंद जी महाराज द्वारा प्रतिपादित प्रयोग

दीपावली पर भाग्योदय, लक्ष्मी सिद्धि, धनवर्षा, ग्रह-शान्ति और रिश्तों में मिठास के 11 सूत्र
ऋषिश्री वरदानंद जी महाराज द्वारा प्रतिपादित प्रयोग
दीपावली केवल दीपों का पर्व नहीं, यह जीवन में भाग्य, स्वास्थ्य, धन, प्रेम और संतुलन के दिव्य द्वार खोलने का अवसर है।
भारतीय परंपरा में यह वह रात्रि है जब लक्ष्मी जी, कुबेर और नवग्रहों की उर्जा जागृत होकर अपने योग्य साधकों के जीवन में स्थिरता लाती है।
इन 11 दिव्य सूत्रों का प्रतिपादन ऋषिश्री वरदानंद जी महाराज द्वारा किया गया है, जिन्होंने ग्रहयोग, ज्योतिषीय तंत्र और वेद-सिद्धान्तों के समन्वय से इन्हें सामान्य जन के लिए सहज और फलदायी बनाया है।
श्रद्धा, नियम और नित्य जप-भाव से इन सूत्रों का पालन करने पर लक्ष्मी सिद्धि, स्वास्थ्य, स्थिरता और जीवन में धनवर्षा अवश्य होती है। ध्यातव्य रहे कि ये उपाय मात्र दीपावली पर ही सीमित नहीं हैं। ग्रहों से सम्बद्ध सूत्र कभी भी लागू किये जा सकते हैं और अन्य अमावस्या और पूर्णिमा को भी इन उपायों को अपनाकर लाभकारी फल प्राप्त किये जा सकते हैं।
सूत्र 1 : दोमुखी दीपक साधना — आरोग्य और अन्नवृद्धि का दीप
विधि :
चतुर्दशी की रात्रि रसोई में सपरिवार घी का दोमुखी दीपक जलाएं।
दो प्रार्थनाएँ करें —
A. आरोग्य की प्रार्थना: “हम सब स्वस्थ और दीर्घायु रहें।” यह प्रार्थना पूरे परिवार के स्वास्थ्य हेतु करनी है। यदि एक भी सदस्य रोगी होता है तो उसका असर परिवार जे अन्य सदस्यों पर भी पड़ता है, इसलिए सभी सदस्य स्वस्थ रहें, यह परिवार के आरोग्य और रोग-मुक्त जीवन के लिए आवश्यक है।
B. अन्न भंडार की प्रार्थना: “हमारे घर का अन्न-आहार शुद और सात्विक हो और हमारा अन्न आहार भंडार सदैव भरा रहे।” यह प्रार्थना अन्नलक्ष्मी जिन्हें अन्नपूर्णा माँ भी कहा जाता है, उनसे घर मे सात्विक आहार और शुद्ध अन्न के भंडार भरे रखने की प्रार्थना करनी है।
अगली सुबह दीपक में शेष घी तुलसी माता को अर्पित करें।
फल : रोग शमन, अन्नवृद्धि और गृह-कल्याण।
ज्योतिषीय आधार : सूर्य-चंद्र संतुलन से देहबल, मानसिक शांति और गृह समृद्धि
सूत्र का सन्देह: यह प्रयोग दर्शाता है कि जीवन मे सबसे बड़ा धन स्वास्थ्य है और यदि आहार स्वस्थ सात्विक होगा तो जीवन भी स्वस्थ रहेगा। इसलिए एक डॉ स्वस्थ गुरु के नाते ऋषिश्री महाराज इस सूत्र से यह संदेश देना चाहते हैं कि “खाओ स्वस्थ, रहो स्वस्थ।”
सूत्र 2 : सतनाज प्रयोग — केतु बाधा शमन और ग्रह संतुलन
विधि :
सात अनाज लें — केतु का अंक 7 है, और दृश्यमान ग्रहों की संख्या भी 7 –
गेंहू 1000g, चावल 750g, जौ 625g, बाजरा 500g, मूंग+उड़द 375g, काले /भूरे देसी चने 250g, सफेद+काले तिल 125g — कुल 3625 ग्राम। यह भी 7 की संख्या केतु की है। यदि आप इस लेख में 7 क्रमांक में दिए गए केतु बंधन का प्रयोग भी करते हैं तो इस सतनाज़े मे से सभी 7 अनाजों को इस तरह से अलग निकाल लें जिनका कुल वजन 125 से 150 ग्राम में से आपके भाग्यांक की संख्या जितना हो। यह प्रयोग कार्य एक ही बार दीपावली के दिन करना है। इसके बाद जो शेष लगभग साढ़े तीन किलो अनाज शेष रहा, इसे पीसकर आटा बनाएं।
शनिवार, मंगलवार और बुधवार को इसकी रोटियाँ बनाकर गरीबों व जरूरतमंदों को दें, और कुछ रोटियाँ कुत्तों को खिलाएँ। आप चाहें तो कुत्तों के लिए कुछ रोटियां बनांकर खिलाने के पश्चात आटा भी किसी गरीब परिवार, जरूरतमंद को दान कर सकते हैं जो इससे रोटियां बनाकर स्वयं ही खाये, न कि किसी और को दे या व्यर्थ करें।
फल : केतु दोष शमन, ग्रह संतुलन, आत्मबलप और भाग्यवृद्धि।
ज्योतिषीय आधार : सात ग्रहों की अनुकंपा प्राप्त होती है, केतु शुभ दिशा में कार्यरत होता है जीवन में आने वाली कठिनाइयों – विवाह, नौकरी, व्यवसाय में हो रही बाधाओं से मुक्ति मिलती है जो केतु के कारण हो रही होती है।
सूत्र 3 : सप्तसफाई — लक्ष्मी निरीक्षण सूत्र
विधि :
दीपावली से पूर्व इन 7 स्थानों की विशेष सफाई करें, क्योंकि लक्ष्मी जी इन स्थानों का निरीक्षण कर यह निर्णय लेती हैं कि वे इस घर में स्थायी रूप से निवास करें या नहीं।
क्रमवार सात स्थान इस प्रकार हैं —
1️⃣ घर का मुख्य द्वार,
2️⃣ रसोईघर,
3️⃣ जलस्थान (किचन सिंक या वॉश बेसिन),
4️⃣ पूजागृह,
5️⃣ तिजोरी/कैश बॉक्स,
6️⃣ दक्षिण दिशा का क्षेत्र,
7️⃣ वह मंदिर स्थान, जहाँ दीपावली की रात्रि लक्ष्मी जी को विराजमान करना है।
फल : गृहदोष का शमन, धन स्थायित्व और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश।
ज्योतिषीय आधार : सप्तग्रहों का शुद्धिकरण — विशेषतः शनि, राहु और मंगल दोष का निवारण
सूत्र की व्याख्या और महत्व:
सप्त स्थान की पवित्रता — स्थायी लक्ष्मी के लिए आधार
लक्ष्मीजी जब किसी गृह में प्रवेश करती हैं, तो वे सर्वप्रथम इन सात स्थानों का निरीक्षण करती हैं:
1. मुख्य द्वार (प्रवेश स्थान) – जहाँ से शुभता भीतर प्रवेश करती है।
2. रसोईघर (अन्नस्थान) – जहाँ जीवन का पोषण होता है।
3. जलस्थान (जल पात्र या टंकी आदि) – जहाँ जल की ऊर्जा निवास करती है।
4. पूजागृह (ईश्वर स्थान) – जहाँ से दिव्यता प्रसारित होती है।
5. तिजोरी या धनस्थान (धन संचय) – जहाँ समृद्धि का केंद्र है।
6. दक्षिण दिशा (पितृ दिशा) – जहाँ पितरों का आशीर्वाद स्थिर रहता है।
7. मंदिर स्थान (जहाँ लक्ष्मीजी को विराजमान किया जाता है) – जहाँ से स्थायी धन-सुख का संचार होता है।
इन सात स्थानों की दैनिक सफाई, सुगंधितता और शुद्ध ऊर्जा बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है।
सूत्र 4 : कमलेभ्यो आह्वान — उत्तर दिशा की समृद्धि साधना
विधि :
कमल पत्र पर लक्ष्मी जी की प्रतिमा विराजमान कर पूजन करें, 11 बार नीचे दिए मंत्र का पाठ करें और पूजन के बाद वही पत्र घर की उत्तर दिशा में रखें।
मंत्र : ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ श्री महालक्ष्म्यै कमलवासिनी नमः
फल : आर्थिक स्थिरता, पारिवारिक सौहार्द्र, गृह क्लेश में शांति।
ज्योतिषीय आधार : उत्तर दिशा — बुध व कुबेर की दिशा — संवाद, वित्त और बुद्धि वृद्धि की कारक
सूत्र 5 : राहु अनुकूलन प्रयोग — नकारात्मकता से मुक्ति
विधि :
250 ग्राम देशी जौ, 10 ग्राम तुलसी पाउडर, 50 ग्राम काला नमक मिलाएँ।
4 ग्राम मात्रा रात्रि सोने से आधा घंटा पहले गंगाजल या गुलाब जल में मिलाकर हाथ व पाँव में मलें —
यह क्रिया घर के “राहु मंदिर” अर्थात बाथरूम/वॉशरूम में करें।
फिर वहाँ बैठकर 13 बार राहु बीज मंत्र जपें। मंत्र: ॐ रां राहवे नमः
बाद में स्वच्छ जल से धोकर, नाभि और पैरों में पंचगव्य घृतम की दो-दो बूँदें लगाएँ।
यह प्रक्रिया दीपावली से लगातार 40 दिन करें। राहु की उठापटक बन्द होकर आपके अनुकूल हो जाएगी
फल : राहु दोष शमन, भय व भ्रम से मुक्ति, नकारात्मकता समाप्त।
ज्योतिषीय आधार : राहु का तामसिक प्रभाव घटाकर गुरु व चंद्र के सहयोग को जागृत करना
सूत्र का महत्व: सारे मतिभ्रमों की जड़ राहु है। अनिर्णय और गलत निर्णयों के कारण भी राहु ही है। परंतु यदि राहु अनुकूल हो जाये तो सही निर्णयों से पासा वक्त देते हैं। राहु में मनुष्य को अर्श से फर्श और फर्श से अर्श पर पहुंचाने की क्षमता होती है। मा. अटलबिहारी बाजपेयी जी राहु की अनुकम्पा से ही 3 बार भारत के प्रधानमंत्री बने और राहु की कुदृष्टि से ही मतिभ्रम में फंसकर सत्ता से ऐसे बेदखल हुए कि कभी उठ भी न पाए।
राहु मंदिर – बाथरूम या वॉशरूम का आध्यात्मिक अर्थ
ऋषिश्री वरदानंद जी महाराज इसे “राहु मंदिर” कहते हैं।
> “जहाँ से शरीर की अपवित्रता बाहर जाती है, वहाँ राहु निवास करता है। राहु को प्रसन्न रखना अर्थात रोग, क्लेश, दुर्भाग्य और मानसिक अव्यवस्था से मुक्ति पाना।”
इसलिए बाथरूम या वॉशरूम को हमेशा:
साफ, सूखा और सुगंधित रखें,
कभी टूटा, गंदा या अंधेरा न रखें,
वहाँ की ऊर्जा को नियमित नमक या गौमूत्र जल से शुद्ध करें,
और उस स्थान पर बासी वस्तुएँ या गंदे कपड़े जमा न होने दें।
यह सब करने से राहु शांत रहता है और लक्ष्मीजी का स्थायी वास संभव होता है।
सूत्र 6 : चाँदी की गौ प्रतिमा — मनोकामना पूर्ति का गोमंत्र
विधि :
घर की अप्रयुक्त चाँदी (सिक्के, पात्र आदि) से गौमाता-बछड़ा सहित प्रतिमा बनवाएँ।
दीपावली पर कमल पत्ते पर विराजमान कर पूजन करें और संकल्प लें —
“मनोकामना पूर्ण होने पर बछड़े सहित गौदान करूँगा।”
पूजन उपरांत प्रतिमा को मंदिर में स्थापित करें और नित्य संकल्प दोहराएँ।
फल : मनोकामना सिद्धि, परिवार में सौभाग्य और आर्थिक उन्नति।
ज्योतिषीय आधार : चंद्र-शुक्र योग — करुणा, संवेदना और समृद्धि का मेल
सूत्र का महत्व: गौमाता में 33 कोटि देवीदेवताओं का वास होता है। गौसेवा और गौदान से सभी देवी देवताओं की कृपा होती है और सभी ग्रहों की प्रतिकूलता, विघ्न-बाधा समाप्त होती है। इसमें कौ संदेह नहीं है। यह सूत्र सभी प्रकार के मनोरथ पूर्ण करने वाला और सर्वाधिक प्रभावशाली है। इसीलिए आपने देखा होगा कि सभी सम्पन्न व्यापारी, मारवालड़ी, गुजराती और जैन समाज के लोग सबसे पहले गौशालाओं के लिए दान सेवा करते हैं। उनके व्यापारिक संस्थानों पर भी दान पेटी रखी होती है। ऋषिश्री महाराज इसे सभी समस्याओं के समाधान का अचूक प्रयोग मानते हैं। इसीलिए वे स्वयं भी गौ सेवा और गौशाला का परिचालन करते हैं। योगी आदित्यनाथ जी भी इसी गौसेवा और गौप्रेम के फलस्वरूप आज उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य और विश्व के सर्वश्रेष्ठ व अनुकरणीय मुख्यमन्त्री हैं।
सूत्र 7 : केतु बंधन — लक्ष्मी सिद्धि हेतु सप्तअनाज का योग
विधि :
ऊपर बताए गए सात अनाज (3625g) में से अपने डेस्टिनी नंबर के अनुरूप 125-150 ग्राम मात्रा लें।
उसे पीले कपड़े में बाँधें, लक्ष्मी सिद्धि मंत्र 7 बार जपें, और तिजोरी में रख दें।
मंत्र: ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः
फल : धनवृद्धि, रोग और ऋण से रक्षा, व्यापार में स्थिरता।
ज्योतिषीय आधार : केतु को गुरु के पीले रंग में बांधकर शुभ कर्मों में नियुक्त करना
सूत्र 8 : कुबेर कोष मंत्र साधना — धन संचय योग
विधि :
मंत्र : ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धना-धान्याधिपतये नमः
108 बार जप करें।
सामने पीतल या सोने की कटोरी में चावल और एक चाँदी का सिक्का रखें।
अगले दिन वह सिक्का अपने पर्स, पॉकेट या मोबाइल कवर में श्रीकोष रूप में रख लें।
फल : अचानक धन लाभ, नई आय के स्रोत, व्यापार वृद्धि।
ज्योतिषीय आधार : वृहस्पति-शुक्र-शनि की त्रिवेणी को सक्रिय कर समृद्धि प्रवाह
सूत्र 9 : श्री शंख धन संवर्धन प्रयोग
विधि :
दीपावली की रात्रि दक्षिणमुखी शंख में जल भरकर पहले “ॐ श्री लक्ष्मी सहोदराय नमः” का 5 बार उच्चारण कर श्री शंख को प्रणाम करें, तत्पश्चात,
मंत्र “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः” का 11 बार जप करें।
फिर उस जल को घर के मुख्य द्वार पर छिड़क दें।
फल : नकारात्मकता दूर, घर में धन प्रवाह वृद्धि।
ज्योतिषीय आधार : जल तत्व से शुक्र और चंद्र सशक्त होते हैं — मन व सम्पन्नता स्थिर
सूत्र 10 : त्रिकाल दीप साधना — जीवन, कर्म और मन का संतुलन
विधि :
तीन कालों में दीपक जलाएँ —
1️⃣ प्रातः — गौघृत से
2️⃣ संध्या/अपराह्न — तिल के तेल से
3️⃣ रात्रि — कमलगट्टे की बाती से
मंत्र : प्रत्येक दीप प्रज्वलन के साथ 7 बार
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मी धनदा लक्ष्मी सहकुबेराय, सहगणेशाय, सहसहोदराय, मम गृहे स्थिरौ ॐ नमः।
फल : धन स्थायित्व, ऋण मुक्ति, लक्ष्मी का स्थायी वास।
ज्योतिषीय आधार : सूर्य, शनि और चंद्र — तीनों कालों के ग्रह सामंजस्य से जीवन में समृद्ध
सूत्र 11 : सौहार्द्र दीपक — रिश्तों में मिठास और प्रेम प्रवाह
विधि :
गुलाब-सुगंधित घी से एक बड़ा दीपक जलाएँ जो पूजन से लेकर ब्रह्ममुहूर्त तक जलता रहे।
पूजन उपरांत बड़ों के चरण स्पर्श करें, परिवार सहित हँसी-प्रसन्नता से समय बिताएँ।
मध्य रात्रि में परिवार के सदस्य दीपक के पास बैठें,
“मंगलं भगवान विष्णु” श्लोक परिवार के नाम लेकर उच्चारित करें, ततपश्चात, सभी दीपक की ओर मुख करके उसे टकटकी लगाकर बिना पलक झपकाए देखते रहें, जब तक कहीं से अश्रुधार न बहने लगे । इसे त्राटक कहते हैं, जिसमे आप स्वयं के बारे, जीवन के बारे में अब तक आंकलन करें और जो जो त्रुटियां, गलतियां हुई है, उनके लिए क्षमा याचना करें। जब दोनों आंखों से जलधार बहती हो, और आप अपने आत्म निरीक्षण से ओतप्रोत हल्का महसूस करें तो आँखें बंद करके मौन हो अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अपने व्यवहार और स्वभाव को याद करके निर्दोष भाव मे आ जाये तब उनके विषय मे एक एक करके सोचे और उनके प्लस पॉइंट्स को काउंट करें। इस तारा, शांत भाव से 5 मिनट मौन साधना करें, आपसी आभार, प्रेम और क्षमा का भाव जागृत करें।
दीपक को तुलसी के पास रखकर प्रार्थना करें — “लक्ष्मी नारायण सदा हमारे घर रहें।” तत्पश्चात लक्ष्मी नारायण को सफेद मिठाई का भोग लगाकर सभी प्रसाद ग्रहण करें।
सुबह प्रत्येक सदस्य तुलसी का एक पत्ता आचमन करें। जल के साथ निगल जाएं, चबाएं नहीं।
फल : गृह सौहार्द्र, वैवाहिक सुख, आरोग्य और प्रेम का स्थायित्व।
ज्योतिषीय आधार : चंद्र-शुक्र संतुलन; भावनाओं और संबंधों का सामंजस्य।
(ऋषिश्री वरदानंद जी महाराज प्रदत्त सौहार्द्र साधना)
सूत्र का महत्व और आह्वान : एक मनोवैज्ञानिक प्रबंधक के नाते ऋषिश्री महाराज ने इस प्रयोग का निरूपण किया है। उनका कहना है कि सभी सम्बन्धों का आधार संवाद होता है और सकारात्मक भाव से किये गए संवाद सम्बन्धों को प्रगाढ़ बनाते हैं। आधुनिक पारिवारिक परिवेश में यह अधिक आवश्यक हो जाता है कि परिवार के सभी सदस्य नित्य कुछ क्षण पारस्परिक पॉजिटिव वार्तालाप के लिए अवश्य निकालें। यह दीपावली सभी रिश्तों को आत्मीयता और स्नेहांकित जुड़ाव की मिठास से सरोबार कर हमारे संयुक्त परिवारों की परंपरा को पुनर्जीवित करें और पति-पत्नी के मध्य ऋणानुबंध से जन्मे परिवार की संकल्पना मधुर और सुखद दाम्पत्य जीवन के साथ साकार संपन्न हो, यही सबसे आग्रह और परमात्मा से प्रार्थना है।
दीपावली पंचदिवसीय पर्व का शुभ संदेश
ऋषिश्री वरदानंद जी महाराज के आशीर्वचन अनुसार —
> “दीपावली का प्रत्येक दिवस आत्मशुद्धि और गृहशुद्धि का प्रतीक है।
धनतेरस से लेकर भाईदूज तक, हर दिन अपने भीतर और अपने घर में एक-एक अंधकार को समाप्त करने का संकल्प लें।
जब भीतर का दीपक प्रज्वलित होता है, तभी लक्ष्मी स्थायी होती हैं।”
महाराज जी की ओर से आप सभी को
✨ धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और भाईदूज ✨
— पंचदिवसीय दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ और आशीर्वाद।
️ समापन
दीपावली का असली अर्थ है — अंधकार से आलोक की ओर बढ़ना।
इन 11 सूत्रों का पालन केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, धन और शांति का विज्ञान है।
ऋषिश्री वरदानंद जी महाराज के ये सूत्र आज भी उतने ही प्रभावशाली हैं जितने प्राचीन काल में थे —
क्योंकि ये मन, ग्रह और कर्म तीनों को एक सुर में लाते हैं। आप इनमें से अपनी सुविधा, सुरुचि और श्रद्धा के अनुसार एक दी अथवा अधिक सूत्र अपनाकर अपने जीवन की दशा दिशा बदल सकते हैं।
सभी सुधिजन पाठकों और अनुयायियों को ऋषिश्री महाराज की ओर से दीपावली की अनंत शुभकामनाएं और प्रेमभरा आशीर्वाद
Hope Dhara Library | Hope India Foundation
यह लेख Hope India Foundation की “Hope Dhara Free Digital Library” का भाग है — जो पिछले 6 वर्षों से समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए निःशुल्क ज्ञानवर्धक सामग्री प्रदान कर रही है और विगत 35 वर्षों से स्थापित फाउंडेशन के वैचारिक अभियान का महत्वपूर्ण आधार बन चुकी है।
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