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हमारे जीवन में शक्ति चक्र – सफलता का विज्ञान

हमारे जीवन में शक्ति चक्र : मुक्त जीवन की महक

क्या आप जानते हैं कि आपके जीवन में घटने वाली या होने वाली प्रत्येक हलचल और उथल पुथल का सम्बंध हमारे शरीर में स्थित शक्ति चक्रों से है ?

-ये शक्ति चक्र ही आपके जीवन-मरण, सुख-दुख, हानि-लाभ, यश-अपयश और सफलता-असफलता के कारण और परिणाम हैं।

-ये शक्ति चक्र 7 हैं जिनमें से 2 सिर के अंदर और 5 रीढ़ की हड्डी में स्थित होते हैं।

-रीढ़ की हड्डी मनुष्य जीवन का आधार है । इस में 33 मनके होते हैं । इन मनको के सामने जो शरीर के अंग है वह नाड़ियों के द्वारा उस मनके से जुड़े हुये हैं । यहां से वे दिमाग द्वारा संचालित होते हैं ।

-हमारे शरीर में रीढ़ की हड्डी में नीचे से ले कर ऊपर तक सात शक्ति चक्र हैं ।
*मूलाधार चक्र* : यह शरीर में रीढ़ की हड्डी की तलहट अर्थात गुदा और जननेन्द्रिय के बीच स्थित होता है।
*स्वाधिष्ठान चक्र* : यह जननेन्द्रिय के ठीक ऊपर होता है।
*मणिपुर चक्र* : यह नाभि के ऊपरी भाग में ठीक नीचे होता है जिससे शरीर की सभी ग्रन्थियां, नसें नाड़िया और महत्वपूर्ण अंग जुड़े होते हैं। इसे सौर जाल या सूर्य चक्र भी कहते हैं।
*अनाहत चक्र* : यह ह्रदय-स्थल में पसलियों के मिलने वाली जगह के ठीक नीचे होता है।
*विशुध्द चक्र* : यह कंठ के गड्ढे में होता है जहाँ से 72 हजार नसें गुजरती है। इसे वाणी-शक्ति भी कहते हैं।
*आज्ञा चक्र* : यह ललाट पर दोनों भौहों के मध्य होता है जहाँ तिलक लगाया जाता है।
*सहस्रार चक्र* : इसे ब्रह्मरन्ध्र भी कहते हैं। यह सिर के सबसे ऊपरी शिखर पर स्थित होता है।

(इन सातों चक्रों के विषय मे विस्तार से जानकारी होपधारा पोर्टल में अलग से एक आलेख में दी गयी है)

-ये चक्र शरीर के अलग अलग भागों में स्थित होते हैं और सम्पूर्ण शरीर और उसके प्रत्येक अंग-प्रत्यंग (बाह्य और आंतरिक) को नियंत्रित, चलायमान और सजीव-निर्जीव (जाग्रत-सुप्त) करते हैं।

इन्हें जगाने से शरीर, मन, बुध्दि और आत्मा का संतुलन बेहतर होता है।

-चक्रों के जागृत होने पर अलग अलग अनुभव हो सकते हैं – जैसे, मूलाधार चक्र से भयमुक्ति, स्थायित्व, और उत्साह का संचार होता है, वहीं सहस्रार चक्र से आध्यात्मिक अनुभूति, समाधि और उच्चतम चेतना का अनुभव हो सकता है।

– इन शक्ति चक्रों के निकट ही ग्रंथियां होती हैं ।

-इन ग्रंथियों से निकलने वाले हार्मोन रक्त में सीधे मिल जाते हैं जो धमनियों के माध्यम से पूरे शरीर में भ्रमण और विश्राम करते हैं ।

-इन हार्मोन से शरीर तथा मस्तिष्क का विकास और संचालन होता है जिससे हम परिस्थितियों का मुकाबला करते हैं ।

ये चक्र शक्ति उत्पादन का कार्य करते हैं ।

-जब तक इन चक्रों में ऊर्जा उचित रुप से कार्य करती है, हम स्वस्थ रहते हैं ।

-जब ऊर्जा का संतुलन बिगड़ता  है हम बीमार हो जाते हैं ।

-प्रमुख चक्रों का आकार अढाई से तीन इंच और साधारण शक्ति चक्र लगभग एक इंच होता है ।

– शक्ति चक्रों का लगभग आधा इंच सूक्ष्म भाग भौतिक शरीर से बाहर निकला रहता है जो दिखाई नही देता । ये सिर्फ प्रकाश है जो औरा (तेज) के रूप में प्रतिबिंबित होता है।

-ये शक्ति चक्र बाहरी वातावरण से शक्ति खींच कर उसको अपने कार्यों के अनुरूप उर्जा में बदल लेते  हैं । फ़िर उसे ग्रंथियों  के माध्यम से सीधा शरीर में भेज देते है ।

-गलत भोजन, बुरी संगत, बुरी घटना और नकारात्मक  विचार,चक्रों की उर्जा को कम या बाधित कर देते हैं । जिस से मन अव्यवस्थित और शरीर बीमार हो सकता है । मन की अवस्था व्यवस्थित करने से पहले शरीर की व्यवस्था अनुशासित करनी होती है।

-स्वाभाविक अवस्था में चक्रों की उर्जा घड़ी की दिशा में घूमती है।

-चक्रों के घुमाव को शरीर के उस हिस्से पर एक सेंटीमीटर ऊपर हाथ रख कर, जहां यह चक्र स्थित है, प्रभावित कर सकते हैं । हाथ को घड़ी की दिशा में घुमाना चाहिये ।

चक्रों को जगाने के लिए ध्यान, योग, मेधा, ध्येय, लक्ष्य में लगाव, विचार-शुद्धि और संतुलित जीवन शैली महत्वपूर्ण है। इनमें से एक भी अभाव चक्रों के जागरण को प्रभावित कर लाभ से वंचित कर सकता है।

-शक्ति चक्रों को जहां ये स्थित हैं वहां पर सांस, व्यायाम, ध्यान, आसन, स्वाध्याय और शुध्द संकल्पों से सक्रिय कर सकते हैं । इनमें *ध्यान और ध्येय* की भूमिका सर्वोच्च है, शेष इनके पूरक हैं।

-जप करना भी ध्यान को बढ़ाने में सहायक होता है किंतु शक्ति चक्र के जागरण में अजपा जप और लिखकर किया गया नाम जप यज्ञ अधिक कारगर होता है क्योंकि वह शरीर और मन दोनों को एक साथ ध्यान की अवस्था में एकाग्रचित करता है ।

-यदि आपने अपने जीवन का ध्येय निर्धारित नहीं किया है तो समझ लो आपके जीवन का आरंभ ही नहीं हुआ है। शक्ति चक्र तो उसके बाद ही जाग्रत होंगे।

-अगर हम शक्ति चक्रों को ठीक करना सीख जायें तो हमारी हर शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक समस्याएँ हल हो जायेगी ।

अस्तु, सही खानपान, सही दिनचर्या, योगाभ्यास, प्रणाभ्यास, सत्संग, सात्विक चर्चा और स्वाध्याय से हम अपने चक्रों की शक्ति को ऊर्जावान बनाकर उनसे हमारे मन, बुध्दि और अहम तत्वों को न केवल नियंत्रित कर सकते हैं बल्कि उन्हें सही दिशा और स्थिति में प्रयोग कर जो चाहे सो प्राप्त कर सकते हैं।

आइए! शक्ति चक्रों को जाग्रत कर मुक्त जीवन की महक का आनंद लें…
साशीर्वाद
जय जय राम
ऋषिश्री वरदानंद
ऋषिश्री वरदानी आश्रम
नवी मुंबई

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