दीपावली की सबसे महत्वपूर्ण जानकारी – मुहूर्त, विधि, उद्देश्य और सन्देश
*दीपावली पूजन की सबसे महत्वपूर्ण पोस्ट*
कई नई व रोचक जानकारियां इसमें है। मुहूर्त के विषय में फैले भ्रम को दूर करने में यह पोस्ट सहायक होगी।
लक्ष्मीजी का पूजन या रामजी का? यह भ्रमित करनेवाले प्रश्न का भी उत्तर है इस पोस्ट में…
लक्ष्मीजी के साथ गणेशजी क्यो? भगवान विष्णु जी क्यों नहीं? यह कंफ्यूजन भी दूर करें।
एक बार यह पोस्ट पढ़ने के बाद भी इसे सुरक्षित रख लें। इसमें आगे भी एडिटिंग करके नई जानकारी जोड़ी जाती रहेगी। जिससे आप इसे फिर से पढ़ना पसंद करेंगे।
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पंडित पंडित मतिर्भिन्ना…* आज सब तरफ कन्फ्यूजन है कि कब छोटी दीवाली मनाएं, कब बड़ी दीवाली मनाएं और कब बहीखाता पूजन करें???
क्योंकि हर दिन में दो तिथियां आधी आधी हो रही है और सूर्य सिद्धांत के अनुसार उदित तिथि को ही मान्यता देने के कारण छोटी दीवाली और बड़ी दीवाली दोनों ही आगे खिसक रही है परन्तु *रात्रि को मनाई जाने वाली दीवाली* रात्रि होते होते तिथि बदल जा रही है जिससे बड़ी दीवाली के समय तक रात्रि से पहले ही अमावस्या समाप्त हो जाती है तो क्या करें?
इसका *समाधान* मिल गया है। विश्वप्रथम रामशक्ति पीठाधीश्वर राष्ट्रीय रत्न *ऋषिश्री वरदानंद जी महाराज* ने इसकी युक्ति निकालकर समाधान दे दिया है।
अस्तु, बड़ी दीवाली *घर में 31 अक्टूबर की रात्रि को* ही मनाई जाएगी क्योंकि अमावस्या तिथि 31-10-24 को सांयकाल 4:30 बजे प्रारम्भ हो जाएगी और अगले दिन रात्रि से पहले ही समाप्त हो जाएगी। चूंकि दीपावली दीपों का उत्सव है और रात्रिकाल में ही दीपक जलाने चाहिए (दिन में दीपों की रोशनी को सूर्य की रोशनी के समक्ष जलाना अंधेरे को भगाने के लिए कदापि नहीं हो सकता); अतः सभी सनातनी अपने *घर की दीपावली 31 अक्टूबर को* ही शुभ मुहूर्त जिसकी गणना चौघड़िए के अनुसार निकाली गई है, उसी के अनुरूप चार में से किसी भी एक मुहूर्त में अपनी राशि और भावना के अनुसार पूजन कर लें। मुहूर्त का चार्ट
*महत्वपूर्ण व्याख्या*
गुरुवार को कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी/अमावस्या तिथि चित्रा नक्षत्र, पिङ्गल नाम संवत् 2081 है।
चतुर्दशी सायंकाल 4:05 बजे तक हैं। ततपश्चात अमावस्या प्रारम्भ ही जाएगी जिसमें शुभ मुहूर्त के अनुसार दीपावली पूजन कर सकते हैं। यह समय उज्जैन की स्थिति के अनुसार लिया गया है जिसमें आप अपने स्थान की उज्जैन से दूरी के अनुसार आधे घन्टे तक का अंतर कर सकते हैं। मुम्बई वासी उज्जैन में 25 मिनिट का समय जोड़कर मुहुर्त बनाएं।*
घरों में दीपावली आज ही रात्रि में मनाएं। व्यापार स्थान पर कल दिन में मनाएं।
*लक्ष्मी पूजन का सायं 6:48 बजे से रात्रि 8: 47 बजे तक अति शुभ समय है।*
मध्य रात्रि 1:15 बजे से 3:27 बजे तक स्थिर सिंह लग्न है।
*मध्य रात्रि 1:30:30 बजे से 3:27 बजे तक महालक्ष्मी पूजा का अतिश्रेष्ठ समय है।*
मध्य रात्रि 1:30:30 बजे से स्वाति नक्षत्र प्रारम्भ होगा।
आज अभ्यङ्ग स्नान पश्चात् यम तर्पण करना चाहिए।
लक्ष्मीजी का वाहन *गरुड़* है। उल्लू नहीं।
यह भी ध्यान रखें कि
*कल शुक्रवार 1 नवम्बर 2024 के दिन घर में पितृकार्ये अमावस्या, का हवन और भोग प्रसाद बनाएं जबकि व्यापार स्थान पर दीपोत्सव (पञ्चाङ्ग भेद) दिन में शुभ मुहूर्त के अनुसार सायंकाल से पहले मना लें।*
चार्ट और व्याख्या में समय का अंतर स्थान में अंतर के कारण है। चार्ट मुम्बई का है जबकि व्याख्या उज्जैन की है। आप अपनी लोकेशन के अनुसार थोड़े समय 5 से 25 मिनिट का अंतर कर सकते हैं स्थानीय पंडितजी से पूछकर या अपना पञ्चाङ्ग देखकर।
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दूसरे दिन अमावस्या सायंकाल 5:50 तक है। इस दिन आप घर में महालक्ष्मी के लिए भोग प्रसाद बनाकर सपरिवार हवन करके ग्रहण करें । व्यापारी और व्यवसायी *1-11-24 को दिन में अपने व्यापार स्थल पर* बहीखाता और लक्ष्मी पूजन करें जिसके लिए महाराज जी ने चार मुहूर्त निकाले हैं – चार्ट के अनुसार।
इस प्रकार दोनों दिन की दीपावली का आनंद लें।
दीपावली की पूरी रात्रि (अगले दिन सूर्योदय तक) महालक्ष्मी जी के निमित्त *घी का एक दीपक* प्रज्ज्वलित रहना चाहिए।
दीपावली के दिन महालक्ष्मी के लिए शुभ समय में *शैय्या* (गादी पर कमल के फूल का बिछौना) बिछाना चाहिए।
*संक्षिप्त दीपावली पूजन विधि-*
दीपावली पर सर्वप्रथम भगवान गणेश पूजन, कलश पूजन तथा षोडश मातृका पूजन के पश्चात प्रधान पूजा में मन्त्रों द्वारा भगवती महालक्ष्मी का षोडशोपचार – पूजन होता है।
इसके बाद भगवान राम की परिवार सहित राम दरबार की पूजा करें। इसके लिए कोई भी राम मंत्र बोलकर उन्हें रोली चावल का तिलक और पान सुपारी इलायची आदि के साथ पुष्पांजलि अर्पित करें। मन ही मन प्रार्थना करें कि जिस तरह आज के दिन भगवान रामजी वनवास पूरा कर अयोध्या लौटे, वैसे ही हमारे घर को भी अयोध्या बनाकर स्थायी रूप से वास करें और घर में राम राज्य अर्थात सब सुखपूर्वक निवास करते हुए समृद्धि करें।
अब पुनः महालक्ष्मी जी की पूजा करते समय *’ॐ महालक्ष्म्यै नमः’* मन्त्र का उच्चारण करना चाहिए।
महालक्ष्मी पूजा के बाद देहली विनायक, श्री महाकाली (मसिपात्र (दवात), लेखनी, सरस्वती (बहीखाता), कुबेर (तिजोरी अथवा चॉंदी के सिक्के आदि), तुला – मान तथा दीपकों की पूजा की जाती है।
देहलीविनायक पूजन – व्यापारिक प्रतिष्ठान में दीवारों पर ॐ गणेशाय नमः, स्वास्तिक – चिह्न, शुभ – लाभ आदि माङ्गलिक एवं कल्याणप्रद शब्द सिन्दूर से लिखे जाते हैं। इन्हीं शब्दों पर *’ॐ देहलीविनायकाय नमः’* मन्त्र द्वारा गन्ध – पुष्प आदि से पूजन किया जाता है।
इसी प्रकार *’श्री महाकाल्यै नमः’* मन्त्र से स्याही युक्त दवात का पूजन करें।
लेखनी की पूजा *ॐ लेखनीस्थायै देव्यै नमः* मन्त्र से करें।
सरस्वती (बहीखाता) पूजन में बहीखाता पर केसरयुक्त चन्दन से स्वास्तिक चिह्न बनाकर थैली में पॉंच हल्दी के गॉंठें, धनिया, कमल गट्टा, अक्षत, दूर्वा और द्रव्य रखकर उसमें सरस्वती का *ॐ वीणापुस्तक धारिण्यै श्रीसरस्वत्यै नमः’* मन्त्र से पूजन करें।
चॉंदी के सिक्के, तिजोरी (लॉकर) की पूजा *’ॐ कुबेराय नमः’* मन्त्र से पूजन करें।
कुबेर का पूजन करने के पूर्व कुबेर का *आवाहन* इस मन्त्र द्वारा करने से कोष में वृद्धि होती है –
*’आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु।’*
*’कोशं वर्द्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर।।’*
कुबेर की पूजा के पश्चात प्रार्थना करें –
*धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।*
*भगवन् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादि सम्पद:।।*
*ॐ दीपावल्यै नमः* मन्त्र से कम से कम 21 दीपक प्रज्ज्वलित कर प्रार्थना करें –
*त्वं ज्योतिस्त्वं रविश्चन्द्रो विद्युदग्निश्च तारका:।*
*सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नमः।।*
पूजन पश्चात लक्ष्मीजी की आरती, पुष्पाञ्जलि, क्षमा प्रार्थना करें।
पुनः प्रणाम कर *ॐ अनेन यथाशक्त्यर्चनेन श्री महालक्ष्मी: प्रसीदतु* कहकर जल छोड़ दें।
दीपावली की पूरी रात्रि *जागरण* करना चाहिए। लक्ष्मी सहस्रनाम, लक्ष्मी स्तोत्र, श्रीसूक्त, लक्ष्मीसूक्त आदि का पाठ करना चाहिए।
इसके अलावा अपनी *कुल परम्परा* के अनुसार महालक्ष्मी का पूजन करें।
इसी विधि से अपने *व्यापार स्थल* पर भी पूजन करें। दीप पूजन हेतु व्यापार स्थल पर स्थानानुसार 3,5,7,11 आदि विषम संख्या में *दीपक* जलाकर सर्वत्र एक एक रख दें।
यदि आपके *एक से अधिक व्यापार स्थान* हैं तो पूर्ण पूजन एक ही मुख्य स्थान पर करें और अन्य स्थानों पर दीप प्रज्वलित कर *प्रसाद वितरण* कर सकते हैं।
अब आते हैं दीपावली के बारे में कुप्रचारित कुछ अन्य भ्रांतियों के निराकरण हेतु
*सभी को अवश्य बताएं*
अधिकतर घरों में बच्चे यह दो प्रश्न अवश्य पूछते हैं : जब दीपावली भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास से अयोध्या लौटने की खुशी में मनाई जाती है तो दीपावली पर लक्ष्मी पूजन क्यों होता है?
राम और सीता की पूजा क्यों नही?
दूसरा यह कि दीपावली पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा क्यों होती है, विष्णु भगवान की क्यों नहीं?
इन प्रश्नों का उत्तर अधिकांशतः बच्चों को नहीं मिल पाता और जो मिलता है उससे बच्चे संतुष्ट नहीं हो पाते।
आज की शब्दावली के अनुसार कुछ ‘लिबरर्ल्स लोग’ और पप्पू छाप नेता लोग युवाओं और बच्चों के मस्तिष्क में यह प्रश्न डाल रहें हैं कि लक्ष्मी पूजन का औचित्य क्या है, जबकि दीपावली का उत्सव राम से जुड़ा हुआ है। कुल मिलाकर वह बच्चों का सनातन धर्म और परंपराओं के प्रति ब्रेनवॉश कर रहे हैं कि सनातन धर्म और सनातन त्यौहारों का आपस में कोई तारतम्य नहीं है। सनातन धर्म बेकार है।
*आप अपने बच्चों को इन प्रश्नों के सही उत्तर बतायें।*
दीपावली का उत्सव दो युग, सतयुग और त्रेता युग से जुड़ा हुआ है। सतयुग में समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी उस दिन प्रगट हुई थी इसलिए लक्ष्मीजी का पूजन होता है। भगवान राम भी त्रेता युग में इसी दिन अयोध्या लौटे थे तो अयोध्या वासियों ने घर घर दीपमाला जलाकर उनका स्वागत किया था इसलिए इसका नाम दीपावली है। अत: इस पर्व के दो नाम है लक्ष्मी पूजन जो सतयुग से जुड़ा है और दूजा दीपावली जो त्रेता युग प्रभु राम और उनके उनके अयोध्या लौटने की खुशी में जलाए गए दीपों से जुड़ा है।
एक प्रश्न यह भी सबके मन में खड़ा किया जाता है कि *लक्ष्मी जी गणेश जी का आपस में क्या रिश्ता है और दीवाली पर इन दोनों की पूजा क्यों होती है?*
लक्ष्मी जी सागरमन्थन में मिलीं, भगवान विष्णु ने उनसे विवाह किया और उन्हें सृष्टि की धन और ऐश्वर्य की देवी बनाया गया। लक्ष्मी जी ने धन बाँटने के लिए कुबेर को खजांची बनाकर अपने साथ रखा। कुबेर बड़े ही कंजूस थे, वे धन बाँटते ही नहीं थे। वे खुद धन के भंडारी बन कर बैठ गए। माता लक्ष्मी खिन्न हो गईं, उनकी सन्तानों को कृपा नहीं मिल रही थी। उन्होंने अपनी व्यथा भगवान विष्णु को बताई। भगवान विष्णु ने कहा कि तुम कुबेर के स्थान पर किसी अन्य को धन बाँटने का काम सौंप दो। माँ लक्ष्मी बोली कि यक्षों के राजा कुबेर मेरे परम भक्त हैं उन्हें बुरा लगेगा।
तब भगवान विष्णु ने उन्हें गणेश जी की विशाल बुद्धि का प्रयोग करने की सलाह दी। माँ लक्ष्मी ने गणेश जी को भी कुबेर के साथ बैठा दिया। गणेश जी ठहरे महाबुद्धिमान। वे बोले, माँ, मैं जिसका भी नाम बताऊँगा , उस पर आप कृपा कर देना, कोई किंतु परन्तु नहीं। माँ लक्ष्मी ने हाँ कर दी। अब गणेश जी लोगों के सौभाग्य के विघ्न, रुकावट को दूर कर उनके लिए धनागमन के द्वार खोलने लगे। कुबेर भंडारी देखते रह गए, गणेश जी कुबेर के भंडार का द्वार खोलने वाले बन गए। गणेश जी की भक्तों के प्रति ममता कृपा देख माँ लक्ष्मी ने अपने मानस पुत्र श्रीगणेश को आशीर्वाद दिया कि जहाँ वे अपने पति नारायण के सँग ना हों, वहाँ उनका पुत्रवत गणेश उनके साथ रहें।
दीवाली आती है कार्तिक अमावस्या को, भगवान विष्णु उस समय योगनिद्रा में होते हैं, वे जागते हैं ग्यारह दिन बाद देव उठनी एकादशी को। माँ लक्ष्मी को पृथ्वी भ्रमण करने आना होता है शरद पूर्णिमा से दीवाली के बीच के पन्द्रह दिनों में।इसलिए वे अपने सँग ले आती हैं अपने मानस पुत्र गणेश जी को।
इसलिए दीवाली को लक्ष्मीजी गणेशजी की पूजा होती है।
यह कैसी विडंबना है कि देश और हिंदुओ के सबसे बड़े त्यौहार का पाठ्यक्रम में कोई विस्तृत वर्णन नही है और जो वर्णन है वह अधूरा है।
इस *लेख को पढ़ कर स्वयं भी लाभान्वित हों और अपनी अगली पीढ़ी को भी बतायें।* दूसरों के साथ साझा करना भी ना भूलेंI
अंत में, सभी सनातनियों से विनती है कि आप अपने त्यौहारों को सिर्फ लकीर पीटने या फॉर्मेलिटी के लिए न मनाएं। इनका आधार, महत्व और प्रभाव भी जानिए – यह त्यौहार क्यों, कैसे और किस उद्देश्य से मना रहे हैं इसकी पूर्ण जानकारी, चर्चा अपने परिवार जे साथ करें। हमारे सभी सनातनी उत्सवों के वैज्ञानिक आधार, विधि और उद्देश्य निहित हैं। उनसे हमें वांछित लाभ मिलता है यदि हम मनःपूर्वक और विधि विधान के साथ पालन करें। हमारे सभी त्यौहार उत्सव, व्रत और परम्पराएं जीवन को सरस्, आनंदित और संकल्पित करने वाले होते हैं। जिन्हें सपरिवार, सानंद मनाकर संकल्प लिया करें कि हम और हमारी पीढियां इन्हें सदैव लगन और प्रसन्नता से इन्हें मनाते हुए परमपिता परमात्मा, सभी देवताओं, पूर्वजों और कुलदेवी का आशीर्वाद प्राप्त करते रहें और सुखी स्वस्थ सम्पन्न जीवन यापन करते रहें। विशेषकर बच्चों में इन त्यौहारों का संस्कार सही विवरण और सटीक जानकारी के साथ अवश्य शेयर करें ताकि कोई भी उन्हें भविष्य में भ्रमित कर अपने सनातन धर्म से दूर न कर सके। याद रखिये, धर्म ही हमें अपने कर्म कर्तव्यों के प्रति निष्ठा और सिद्धि की भावना प्रदान करता है और सही जीने की कला सिखाता है।
दीपावली का त्यौहार भी हमें बहुत कुछ सिखाता है। स्वास्थ्य का धन ही वास्तविक धन है, यह धन तेरस भगवान धन्वंतरि के पूजन से सही खानपान की प्रेरणा और दीर्घायु होने का वरदान देता है। महालक्ष्मी का पूजन हमें जीवन में सोने चांदी वस्त्र इत्यादि धन की बरसात करते रहने – कमाना और बांटते जाना : दान करना – आदि सिखाता है। दीपोत्सव भगवान राम के आगमन की सूचना और सपरिवार सुखपूर्वक जीवन यापन की स्मृति कराता है। जगमगाते दीपों की रोशनी हमें अंधेरों से निकलकर प्रकाश की ओर चलने की प्रतिज्ञा अर्थात नकारात्मकता का त्याग कर सकारात्मक बनने का संकल्प देती है। अस्तु, सभी संयुक्त परिवार एकजुट रहकर सकारात्मक जीवन जीने का संकल्प करें। एक रहें, नेक रहें, एकमेव रहें, सेफ रहें – बंटेंगे तो कटेंगे...दुनिया में चारों ओर जिहादियों और विधर्मियों की मनमानी और अमानवीय गतिविधियों के कारण मानवता के अस्तित्व पर संकट छाया हुआ हैं और यह संकट इसलिए है क्योंकि हम विभिन्न जातियों, मतों, वर्गों और सम्प्रदायों में बंट गए हैं जिससे सनातन धर्म सिकुड़ता जा रहा है, उसे पुनर्स्थापित करना और पुनः सम्पूर्ण विश्व में सनातन का डंका बजाना ही संसार की रक्षा का मूलमंत्र है।
May the victory of lights over darkness illuminate you with positivity, fill your heart with love and joy all around.
Heartiest best wishes for Deepawali
दीपावली के इस पावन पर्व पर हम सभी दीयों की रोशनी मे अपने जीवन को रोशन करें. गणेशजी माता लक्ष्मी माता सरस्वती और प्रभु श्री राम जी का आशीर्वाद आप सभी पर बना रहे.
दीपावली की आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं, शुभाशीर्वाद और सदैव स्व्स्थ रहने की प्रार्थना
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