बिहारियों को किसे वोट देना है – याद है बिहार का एसिड कांड ???

बिहार में चुनाव की लहर
हर बिहारी को यह घटना याद करके वोट देना चाहिए यदि वह सच्चा बिहारी सपूत है तो बिहार की फिर से ऐसी घटना की चपेट में नहीं आने देगा चाहे उसे कितना भी बड़ा प्रलोभन, झांसा या स्वार्थ का झुनझुना क्यों न दिया जाय।
यह घटना है उस सीवान के खौफ़ की कहानी,
जिसने पूरे बिहार को हिला दिया था — शाहाबुद्दीन का आतंक।
“ACID -कांड” — शाहाबुद्दीन का दरबार और सीवान की दहशत
16 अगस्त 2004 की रात थी।
सीवान की गौशाला रोड पर स्थित राजीव किराना स्टोर में 7–8 बदमाश घुस आए।
शाहाबुद्दीन के नाम से २ लाख की रंगदारी मांगी गयी
लालू – रावडी के राज में रंगदारी माँगा जाना आम बात थी
उन्होंने कैश काउंटर लूट लिया।
जब दुकान मालिक राजीव ने विरोध किया,
तो उन गुंडों ने उसे बेरहमी से पीटना शुरू कर दिया।
यह देखकर उसका भाई गिरीश बाथरूम में भागा,
एक बोतल तेज़ाब (एसिड) उठाई और चिल्लाया —
“भाग जाओ, वरना एसिड फेंक दूँगा!”
ये सुनकर गुंडे भाग निकले।
लेकिन थोड़ी ही देर में वे वापस लौटे —
इस बार पूरी तैयारी के साथ।
उन्होंने राजीव और उसके दोनों भाइयों, गिरीश और सतीश, को अगवा कर लिया।
तीनों को प्रतापपुर के पास गन्ने के खेतों में ले जाया गया।
वहाँ गिरीश और सतीश को पेड़ से बाँध दिया गया,
राजीव को अलग बैठा दिया गया।
थोड़ी देर बाद वहाँ पहुँचे शाहाबुद्दीन,
जो उस समय राजद (RJD) के सांसद थे।
वहाँ उसने अपना “दरबार” लगाया —
और हुक्म दिया,
“दोनों को एसिड से नहला दो।”
बस इतना कहना था —
उसके गुर्गों ने बोतलें उठाईं और दोनों भाइयों पर तेज़ाब उड़ेल दिया।
दर्द से चीखते-चिल्लाते गिरीश और सतीश वहीं जलते रहे।
धुआँ उठ रहा था, मांस पिघल रहा था, और हवा में सड़न की गंध फैल गई।
राजीव यह सब देखता रह गया — जड़ होकर, पत्थर बनकर।
उसे बंधक बना लिया गया, और उसके पिता चंदा बाबू से फिरौती माँगी गई।
तीसरे दिन किसी तरह राजीव भाग निकला और घर पहुँचा।
उसने पूरी घटना पिता को बताई।
चंदा बाबू हिल गए, लेकिन डर के बावजूद उन्होंने हिम्मत दिखाई —
और सीधे थाने पहुँच गए।
थानेदार शाहाबुद्दीन का नाम सुनते ही काँप गया।
उसने कहा,
“आप नहीं जानते, किससे टकरा रहे हैं।”
लेकिन चंदा बाबू रुके नहीं।
वे एसपी के पास गए, फिर डीआईजी के पास —
और अंततः डीआईजी के हस्तक्षेप के बाद एफआईआर दर्ज हुई।
मामला कोर्ट पहुँचा।
70 साल के चंदा बाबू ने खुद गवाही दी,
शाहाबुद्दीन को आरोपी बताया।
उन्हें डर था कि जैसे बाकी मामलों में शाहाबुद्दीन छूट जाता है,
वैसे यहाँ भी कुछ न हो जाए।
राजीव, जो इस कांड का इकलौता चश्मदीद था,
उसे 19 जून 2014 को गवाही देनी थी।
लेकिन 16 जून को,
गवाही से तीन दिन पहले,
राजीव को गोलियों से छलनी कर मार दिया गया।
⚖️ शाहाबुद्दीन — जेल में भी राजा
शाहाबुद्दीन की गिरफ्तारी तो राजद सरकार गिरने और राष्ट्रपति शासन लगने के बाद हुई।
पर असल में वह जेल में नहीं, अपने साम्राज्य में था।
सीवान जेल ही उसका दरबार थी।
हर दिन शाम 4 बजे से लोग “साहब” से मिलने आते —
समस्याएँ बताते, फैसले सुनते।
जेलर और पुलिस उसके आगे बेबस थे।
2017 में उसे आखिरकार तिहाड़ जेल भेजा गया।
☠️ अंत और विरासत
यह तो बस एक केस था।
शाहाबुद्दीन के खिलाफ़ ऐसे कई नरसंहार, अपहरण, हत्या और आतंक के मामले थे।
लेकिन किसी भी अपराध का असली दंड उसे नहीं मिला।
कोविड के दौरान उसकी प्राकृतिक मृत्यु हो गई —
बिना अपने गुनाहों का हिसाब दिए।
आज, वही शाहाबुद्दीन का बेटा उसामा
उसी पार्टी (राजद) से सीवान की रघुनाथपुर सीट से चुनाव लड़ रहा है।
लोग कहते हैं —
“अपराधी मर गए, लेकिन अपराध की विरासत अब भी ज़िंदा है।”


