क्या है आपका आत्मिक स्वभाव?

*आपका इस जन्म में मूल अर्थात आत्मिक स्वभाव क्या है?*
वैदिक ज्योतिष के अनुसार प्रत्येक राशि के जातक पर उसके लग्न का सबसे पहला प्रभाव होता है जो उसके जीवन के बेसिक स्वभाव और सोच विचार को प्रकट करता है। इसी लग्न के अनुसार उस व्यक्ति के मूल स्वभाव को समझा जा सकता है।
ज्योतिष में, लग्न जातक के स्वभाव और व्यक्तित्व को दर्शाता है। लग्न का अर्थ है जन्म के समय आकाश में सबसे ऊपर का ग्रह। यह जातक के शरीर, बल, रूप-रंग, स्वभाव, आत्मा, मस्तिष्क, आकार, सेहत, मान-सम्मान और प्रतिष्ठा के बारे में जानकारी प्रदान करता है. लग्न वैदिक ज्योतिष में फलित करते समय ग्रह, राशि, भाव को समझतें हैं जिससे जीवन के सभी पहलुओं को समझ पाते हैं।
जन्म के समय पूर्व दिशा में उदित होने वाली राशि से ही अपना लग्न ज्ञात करते हैं और वह हमारी द्वादश राशियों से कोई एक हो सकती हैं।
यदि अपने अपनी कुंडली बनवाई हुई है या आपके पास उपलब्ध है तो आप उससे भी अपने लग्न का ज्ञान कर सकते हैं। कैसे?
*लग्न का ज्ञान : जन्मकुंडली के प्रथम स्थान में जो अंक लिखा होता है वही आपका लग्न होता है। जैसे अगर केंद्र में 1 अंक लिखा है तो आपका मेष लग्न होगा। 2 लिखा है तो वृषभ लग्न होगा।
इसी तरह 12 राशियों के अनुसार जो भी अंक लिखा होगा क्रमानुसार वही आपका लग्न होगा।
कुंडली का पहला भाव लग्न होता है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व, शारीरिक बनावट, स्वास्थ्य और जीवन के प्रति शुरूआती नजरिए को दर्शाता है। यह आत्मा का प्रतीक है और यह तय करता है कि व्यक्ति दुनिया को कैसे देखता है और दुनिया उसे कैसे देखती है?
जातक स्वयं भी अपनी लग्न राशि के अनुसार अपनी मूल प्रकृति जानकर अपने जीवन की दशा और दिशा में बदलाव लाने का प्रयास कर सकता है
अर्थात अपनी प्रकृति के सकारात्मक भाव को बढ़ाने और नकारात्मक भाव को नियंत्रित एवं कम करने का बलपूर्वक प्रयत्न कर सकता है। परन्तु इसके लिए सबसे पहले उसे अपनी लग्न राशि के अनुसार स्थापित मूल प्रकृति को गुण-दोष रूप में स्वीकार करना होता है तभी वह उसमें परिवर्तन करने में सफल हो सकता है।
*यहाँ अलग-अलग लग्न राशियों की मूल आत्मिक प्रकृति बताई गई हैं।*
आप और आपके परिवार के सभी पात्र भी यदि चाहें तो अपनी अपनी लग्न राशि से स्वयं को जानने और उसमें बदलाव, उत्थान (यदि चाहते हों तो) आदि की योजना पर चिंतन कर सकते हैं। इसके मद्देनजर आप अपने जीवन का अब तक का आंकलन और विश्लेषण कर आगे के जीवन की रूपरेखा भी सत्यनिष्ठा एवं पूर्वाग्रह रहित होकर निश्चित कर सकते हैं।
*जानिए अपनी लग्न राशि के अनुसार आपका मूल आत्मिक स्वभाव
1. मेष: मंगल ग्रह इस राशि का स्वामी है जिसके कारण व्यक्ति साहसी, ऊर्जावान, और नेतृत्व करने में माहिर होता है। इसे “आदमी का बच्चा” कहते हैं क्योंकि इसका स्वभाव मर्दाना, जोशीला और थोड़ा जिद्दी होता है। यह जोखिम लेने से नहीं डरता और अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए तेजी से कदम उठाता है। जातक का रंग गेहुआं और नेत्र गोल होते हैं। जातक क्रोधी और उग्र-प्रकृति वाला होता है, उस कारण मुख पर दृढ़ता व कठोरता बनी रहती है। जातक हमेशा नेतृत्व की चाह करने वाला, महत्वाकांक्षी होता है। उस लग्न के व्यक्ति स्वच्छंद जीवन की लालसा रखते हैं। यह अद्भुत विचारों के अन्वेषक होते हैं। इस राशि का व्यक्ति अपनी पहचान बनाने में कुशल होता है और उसे भीड़ से अलग दिखना पसंद होता है।
2. वृष: शुक्र इस राशि का स्वामी है जो व्यक्ति को “धन की मशीन” बनाता है।यह सुख-सुविधा, विलासिता और स्थिरता की चाह रखता है। कला, संगीत, और भौतिक संपत्ति इसके जीवन का मुख्य हिस्सा होते हैं। यह धीरे-धीरे लेकिन लगातार मेहनत करता है और अपने आसपास सुंदरता बनाए रखना पसंद करता है। ये लोग अपनी इच्छानुसार काम करने वाले तथा धन-संपत्तियों को इकट्ठा रखने की चाह रखने वाले लोग होते हैं। ये लोग अपने प्राय: सभी कार्यों को गुप्त रखना पसंद करते हैं। उनकी स्मरण शक्ति इच्छानुसार तेज होती है। इस लग्न के जातक स्थिर, व्यावहारिक और कलात्मक होते हैं। यह सौंदर्य, आराम और सुख की तलाश में रहता हैं।
3. मिथुन: बुध के प्रभाव से यह व्यक्ति “टेलीफोन” जैसा होता है—बातूनी, बुद्धिमान, जिज्ञासु, सामाजिक और संचार में निपुण। इसका दिमाग तेज और उत्कंठापूर्ण होता है जो इसे कई क्षेत्रों में प्रतिभाशाली बनाता है। इस तरह के व्यक्ति प्रसन्न चित्त, तीक्ष्ण बुद्धि, स्पष्ट वक्ता, मेधावी, दूरदर्शी व कला व साहित्य में रुचि रखने वाले होते हैं। इस लग्न वाले व्यक्ति मे भाव तत्व व बुद्धि दोनों प्रबल रूप मे विद्यमान होती हैं। यह नई चीजें सीखने और लोगों से जुड़ने में माहिर होता है। यह ज्ञान और नई चीजों को सीखने में रुचि रखता हैं।
4. कर्क: चंद्रमा इस राशि का स्वामी है जो इसे “भावना की पुतली” बनाता है। यह संवेदनशील, परिवार से गहराई से जुड़ा और दूसरों की देखभाल करने वाला होता है। इसका मन पानी की तरह बदलता रहता है जिसके कारण यह कभी खुश तो कभी उदास हो सकता है।इस लग्न के व्यक्ति बुद्धिमान, गतिशील, उदार, विशाल हृदय वाले, परिश्रमी एवं समयानुसार काम करने वाले होते हैं। जातक का अस्थिर स्वभाव का होना, अधिक कल्पनाशील होना, भावुक मन तथा विलासी होना नुकसानदायक हो सकता है। यह परिवार के प्रति समर्पित होता हैं। यह सुरक्षा और सुरक्षा की तलाश में रहता है।
5. सिंह: सूर्य इस राशि का स्वामी है जिससे यह “अहम से भरा” वा “बड़ाई का भूखा” होता है। आत्मसम्मान, शाही अंदाज और नेतृत्व इसके खास गुण हैं। इस लग्न वाले व्यक्तियों की चौड़ी छाती, पुष्ट शरीर से प्रभावशाली व आकर्षक व्यक्तित्व चेहरे पर दिखाई देता है। ये लोग बचपन से नेतृत्व की चाह रखने वाले होते हैं। इनका रहन-सहन आडंबरपूर्ण तथा रईसमिजाज होता है। यह हमेशा ध्यान का केंद्र बनना चाहता है और अपनी शक्ति को दिखाने में विश्वास रखता है। यह यश और प्रशंसा की तलाश में रहता हैं।
6. कन्या: बुध के प्रभाव से यह “कर्मठ सेविका” जैसा और व्यवस्थित होता है। यह छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देता है और विश्लेषण करने में कुशल होता है। इनमें स्त्रियों की तरह लज्जापन एवं मधुर वाणी होती है। जातक विचारशील, धैर्यवान, गणितज्ञ, तार्किक एवं साहित्यप्रेमी होते हैं। इस लग्न वाले व्यक्तियों की स्मरण शक्ति तीव्र होती है। ये अपने सभी कार्य गुप्त रखना पसंद करते है। इनमें आत्मविश्वास की कमी होती है। दुश्मनों और बीमारियों से लड़ने में यह सक्षम होता है और सेवा करने में खुशी मिलती है। यह विवरणों पर ध्यान देता हैं और सुधार करने की कोशिश करता हैं।
7. तुला: शुक्र इस राशि का स्वामी है जिससे यह “हर बात में लाभ-हानि सोचने वाला” होता है। संतुलन, सौंदर्य और सामाजिकता इसके मुख्य गुण हैं। जातक प्राय: प्रसन्न चित्त रहने वाला तथा तेज बुद्धि वाला होता है। ऐसा व्यक्ति न्यायप्रिय, शांतिप्रिय, सुधारवादी, साधु स्वभाव के व संगीत प्रेमी होता हैं। यह रिश्तों को बहुत महत्व देता है और झगड़े से बचने की कोशिश करता है। यह सौंदर्य, कला, शांति और संतुलन की तलाश में रहता हैं।
8. वृश्चिक: मंगल इस राशि का स्वामी है जिससे यह “भूतों का सरदार” वा “रहस्यमयी जादूगर” जैसा होता है। इसका स्वभाव गहरा, जुनूनी, शक्तिशाली, परिवर्तनशील और रहस्यमयी होता है।इस लग्न के जातक सुंदर, परिश्रमी, जानकारी वाले, स्वेच्छाचारी होते हैं। ऐसे व्यक्ति मितव्ययी एवं संग्रह करने में चतुर होते हैं। यदि लग्न पापयुक्त हो तो जातक झगड़ालू, असंयमी व निर्दय अपराधी हो सकते हैं। यह भावनाओं को छिपाने में माहिर होता है और मुश्किल हालात में भी हार नहीं मानता। यह रहस्य और गहराई की तलाश में रहता हैं।
9. धनु: गुरु इस राशि का स्वामी है जिससे यह “बाप-दादा की धौंस जमाने वाला” होता है। यह धार्मिक, ज्ञानी और साहसी होता है और जीवन को दार्शनिक नजरिए से देखता है। जातक स्वाभिमानी, नि:स्वार्थी, न्यायप्रिय, तीक्ष्ण बुद्धि, उदार तार्किक, गंभीर, विश्वासपात्र होते हैं। उत्तेजित अवस्था में ये अत्यंत क्रोधी, मुंहफट व अवसर का लाभ उठाने वाले होते हैं। यदि लग्न पाप पीड़ित हो तो व्यक्ति दंभी, कठोर, स्वभाव व आडंबर वाले होते हैं।यह यात्रा और नई चीजें सीखने का शौकीन होता हैं। इसलिए सदैव रोमांच, यात्रा और ज्ञान की तलाश में रहता हैं।
10. मकर: शनि इस राशि का स्वामी है जिससे यह “चौबीसों घंटे काम में लगा” रहता है। यह मेहनती, व्यवहारिक, अनुशासित और महत्वाकांक्षी होता है। व्यक्ति स्वभाव से धैर्यवान, सेवाभावी, गंभीर, संयमी, आस्तिक, गृहस्थ जीवन से संतुष्ट, परिश्रमी होता है। ऐसे व्यक्ति जमीन से जुड़ी वस्तुओं में ज्यादा सफलता प्राप्त करते हैं। अपने लक्ष्यों को पाने के लिए यह कठिन परिश्रम करता है और धैर्य रखता है। यह सदैव सफलता और प्रतिष्ठा की तलाश में रहता हैं।
11. कुंभ: शनि और राहु का प्रभाव इसे “जल्दी रास्ता बनाने वाला” बनाता है। यह नए विचारों और सामाजिक बदलाव में रुचि रखता है। स्वभाव से ये व्यक्ति मेधावी, दयालु, मिलनसार, विशाल हृदय वाले, साहित्य में रुचि रखने वाले होते हैं। यदि इनकी राशि में शनि नीच हो तो जातक दंभी, उद्दंड, निर्लज्ज होते हैं। यह दूसरों से अलग सोचता है और समाज के लिए कुछ बड़ा करना चाहता है। यह नए विचारों और प्रगति की तलाश में रहता हैं।
12. मीन: गुरु इस राशि का स्वामी है जिससे यह “हमेशा चुप रहने वाला” वा “मौनी बाबा” होता है। यह आध्यात्मिक, कल्पनाशील, संवेदनशील और दयालु होता है। ये स्वभाव में विनम्र होते हैं। ये लोग धर्मपरायण, रूढ़िवादी, आस्तिक, परोपकारी, महत्वाकांक्षी व सुसंस्कृत होते हैं। यह भावनाओं और सपनों की दुनिया में रहना पसंद करता है और दूसरों की मदद करने में खुशी पाता है। यह प्रेम, सहानुभूति और रहस्य की तलाश में रहता हैं।
निष्कर्ष : लग्न जातक के स्वभाव और व्यक्तित्व को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रत्येक लग्न के जातक का अपना विशिष्ट स्वभाव होता है जो उनकी जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति से प्रभावित होता है।
कोई भी व्यक्ति सर्वगुण सम्पन्न नहीं होता। सबमें कुछ प्लस पॉइंट तो कुछ माइनस पॉइंट होते हैं। ज्योतिष शास्त्र हमें जीवन के दोनों पहलुओं से अवगत कराता है। मनुष्य को चाहिए कि वह अपने प्लस पॉइंट को सदैव स्मरण करते हुए ईश्वर का बार बार धन्यवाद करें और माइनस पॉइंट्स को विनम्रतापूर्वक स्वीकार कर उन्हें सुधारने की अपने ईष्ट देव से प्रार्थना करनी चाहिए। प्रार्थना में बड़ी शक्ति है।
*नोट:* उपर्युक्त लग्न राशि और लग्न का प्रभाव वैदिक ज्योतिषशास्त्र के अनुसार है। अंकज्योतिष के अनुसार राशि अलग हो सकती है और उस पर लग्न के प्रभाव का कोई सम्बन्ध नहीं होता।
अपनी सही राशि, लग्न और आत्मिक स्वभाव एवं अन्य ज्योतिष, अंक ज्योतिष, वास्तु-शास्त्र, नाड़ी-विज्ञान से सम्बद्ध विषयों में किसी योग्य विशेषज्ञ, गुरु, आचार्य से मार्गदर्शन व परामर्श अवश्य लें।
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