कहीं भारत को युध्द में फँसाने की चाल तो नहीं?
जब पप्पू मोदी सरकार के स्टैंड का पूर्णतः समर्थन करें तो संदेह तो होगा ही…
जब ओवैसी जैसा कट्टर मुस्लिम पहलगाम हमले के दोषी पाकिस्तानी आतंकवादियों को न बख्शने की नसीहत देने लगे तो डाउट तो होगा ही…
जब जावेद अख्तर जैसा घाघ मुसलमान पाकिस्तानी मुल्लों को कोसने लगे तो संदेह होना लाजमी है…
वर्ष 2001 में जब संसद पर हमला हुआ था तो उसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने बॉर्डर पर सेनाओं को तैनात कर दिया।
जम्मू कश्मीर से लेकर गुजरात तक सीमाओं पर भारतीय सेना इस तरह खड़ी हुई, कि आदेश मिलते ही हमला कर सकें।
पाकिस्तान को भी अपनी सेना सीमा पर भेजनी पड़ी। दोनों सेनाएं काफी समय तक आमने सामने खड़ी रहीं।
दिसम्बर से मार्च आते आते बिना युद्ध के ही पाकिस्तानी सेना की सांस फूल गई।
उसके पास इतनी शक्ति और संसाधन ही नहीं था कि वो अधिक दिन युद्ध के मोर्चे पर खड़ी रह सके।
एक भी गोली नहीं चली लेकिन पाकिस्तान के पसीने छूट गए।
युद्ध तो दूर, उसकी तैयारी भर में जो अतिरिक्त खर्च होता है, उसी ने पाकिस्तान को कंगाल कर दिया।
लेकिन तभी भारत में पाकिस्तान का इको-सिस्टम सक्रिय हो गया।
मीडिया में ऐसी रिपोर्ट्स छपने लगीं कि थार के मरुस्थल में 51 डिग्री तापमान हैं। भारतीय सैगनिक गर्मी से परेशान हैं। किसी भारतीय सैनिक के साथ कोई दुर्घटना हो जाये तो उसे खूब बढ़ा चढ़ा कर छापा जाता।
बताया जाने लगा कि जवानों का मनोबल टूट रहा है। *टाइम्स ऑफ इंडिया, इंडिया टुडे, एनडीटीवी* जैसे मीडिया समूह ने खूब नौटंकी की।
दस महीने बाद, जब भारतीय सेनाएं छावनियों में लौटीं, तब तक पाकिस्तान दिवालिया हो चुका था।
उसकी सेना इतनी बुरी तरह पस्त हो चुकी थी मानों युद्ध हार कर लौटी हो।
लेकिन मीडिया ने इस बात को बिलकुल भी प्रमुखता नहीं दी।
उल्टा वाजपेयी सरकार पर ताने मारे गए कि जब युद्ध लडना ही नहीं था, तो सेना क्यों भेजी?
भारत की स्थिति आज उन दिनों की तुलना में बहुत मजबूत है।
पाकिस्तान भारत से लडने आया, तो पीछे से बलूचिस्तान और तालिबान वाले तैयार बैठे हैं।
चीन अमेरिका के साथ टेरिफ वार में व्यस्त है।
लेकिन जिस प्रकार से राजनीति और मीडिया का एक वर्ग, युद्ध की हुंकार भर रहा है, वो संदेह पैदा करता है कि कही ये कोई जाल तो नहीं!?
युद्ध का जाल, जिस में भारत को फसाया जा सके, ताकि उसकी आर्थिक विकास को पटरी से उतारा जा सके।
वैसे ही जैसे रूस को यूक्रेन के साथ फंसाया गया।
रूस जैसी महाशक्ति आज अपने सारे संसाधन यूक्रेन जैसे फटीचर देश पर बर्बाद कर रहा है।
भारत एक आर्थिक और वैश्विक महाशक्ति के रूप में उभरे, ना अमेरिका चाहता है, ना यूरोप, ना चीन, और ना ही भारत के अंदर बैठे उनके एजेंट।
वे चाहते हैं कि सीमा पर युद्ध हो, और देश के अंदर गृहयुद्ध।
कुछ दिन पहले इसी तरह से बांग्लादेश में हिंदुओं की हत्या करके, भारत को हमले के लिए उकसाया जा रहा था।
मणिपुर को महीनों तक जलाया गया।
उससे पहले, सीएए और किसान आंदोलन की आड़ में गृहयुद्ध भड़काने के प्रयास हुए।
यदि हम सोचते हैं कि राहुल गांधी केवल छुट्टी मनाने और आराम करने अमेरिका गया था, तो ये हमारी भूल है।
असदुद्दीन ओवैसी जैसा जेहादी यदि आतंकवाद के विरुद्ध बोलने लग जाये, तो मतलब दाल में कुछ काला है।
भारत और हिंदूविरोधी ग्लोबलिस्ट शक्तियां अपने प्यादों से वजीर को घेरने के प्रयास में हैं।
कुछ तथ्य हैं, जो हमें ध्यान में रखने चाहिए।
1. पहलगाम हमले से कुछ सप्ताह पहले ही अमेरिका ने पाकिस्तान को 400 मिलियन डॉलर की सहायता दी है।
2. महीने भर पहले ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख ने सऊदी अरब का दौरा किया।
3. कुछ सप्ताह पहले ही हमास के आतंकवादी पीओके आए थे, और वहां पाकिस्तानी एजेंसियों के लोगों से मिले थे।
4. एक सप्ताह पहले ही पाकिस्तान का सेना प्रमुख असीम मुनीर, हिंदुओं और प्रधानमंत्री मोदी के विरुद्ध जहर उगल रहा था।
इन बातों का ये अर्थ बिलकुल नहीं, कि पाकिस्तान या बांग्लादेश को, उनके दुस्साहस के लिए दंडित ना किया जाए।
युद्ध तो अवश्यंभावी है, किन्तु कोई भी युद्ध अपनी शर्तों और अपनी सुविधा से होना चाहिए।
युद्ध एक निश्चित परिणामों के लिए लड़े जाने चाहिए, ना कि अपने आक्रोश को शांत करने या जनभावना को संतुष्ट करने के लिए।
पाकिस्तान बांग्लादेश या किसी भी बाहरी शत्रु के साथ क्या करना है ये सरकार और देनेपर छोड़ दें।
वो आज हमला करें, छह महीने बाद करें या न करें! सरकार के पास सौ तरीके हैं।
सिंधु का पानी रोकना तो उनमें से केवल एक है।
हमारे लिए केवल इतना पर्याप्त है हम अपने मोहल्ले, गली और सोसायटी के आस पास बसे आधे मोर्चे के शत्रुओं पर कड़ी नजर रखें!
उन राजनीतिक दलों पर भी नजर रखें जो वोटबैंक के लिए नीचता की सारी सीमाएं लांघ सकते हैं!
चैनलों अखबारों से लेकर यूट्यूबरों तक की एक बड़ी लश्कर उनके पास है।
कुछ भाड़े के विदूषक भी इसी बहाने पब्लिसिटी लूटने में लगे हैं उन सब की पहचान करें।
जितना संभव हो उनका सामाजिक बहिष्कार करें।
सेना केवल सरहद का युद्ध जीत सकती है, देश के अंदर की रखवाली हमें और आप को ही करनी होगी!
हमारा एकमात्र उद्देश्य, हिंदू समाज को जागृत और एकजुट करना है, इसमें सहभागी बनें।
धन्यवाद
साभार: indix online
नोट: असदुद्दीन ओवैसी अकेला नहीं अभी जावेद अख्तर का भी बयान आया है पाकिस्तानी मुल्ला बोलकर झूठा बोल रहा है पाकिस्तानियों को, ये सब अब चाहते हैं भारत युद्ध में घिर जाए, इसलिए ऐसे तमाम वीडियो और बयानों के पीछे खड़े शख़्स की असलियत को पहचानें, ये केवल मोदी विरोधी नहीं हैं, मोदी सरकार तो अभी आई है, असलियत में तो ये पहले से ही, हिंदूविरोधी भी हैं, और भारतविरोधी भी!
पूर्ण बहिष्कार भूलना नहीं है… पाकिस्तान, बांग्लादेश, केरल, पश्चिम बंगाल और पहलगाम से साफ हो चुका है..
आतंकवाद, पाकिस्तान, जेहाद का रिश्ता क्या? ला इलाह इल्लिलाह!?
इसीलिए कहा गया है कि War has its own glory , no less than peac
जागो और जगाओ भारत
जग सिरमौर बनाओ भारत!
वंदेमातरम्