जन जागरणसंस्कार भारतसवस्थ भारतसवस्थ लाइफ स्टाइल

स्वस्थ स्नान की विधि

  • स्वस्थ भारत अभियान सीरीज के अंतर्गत

स्वास्थ्य प्रदायक स्नान विधि

तेज धूप, चिलचिलाती गर्मी, पसीने की चिपचिपाहट और निढाल शरीर ; ऐसे में शीतल जल से शावर या झरने के नीचे नहाने का मौका मिल जाये तो क्या ही बात ! तन मन चहचहाने लगे;

लेकिन क्या आप जानते है कि स्नान करने के भी नियम होते हैं जिसका सम्बन्ध शरीर के साथ साथ मन, बुद्धि, आत्मा से भी है और आपके भाग्य से भी।

इन्ही बातों को जानने के लिए होपधारा लाइब्रेरी के इस लेख को शुरू से अंत तक पढ़ें। आप इसे अपने इष्ट मित्रों के साथ शेयर करने से नहीं रह पाएंगे :

स्नान सूर्योदय से पहले ही करना चाहिए ।

मालिश के आधे घंटे बाद शरीर को रगड़-रगड़ कर स्नान करें ।

स्नान करते समय स्तोत्रपाठ, कीर्तन या भगवन्नाम का जप करना चाहिए ।

स्नान करते समय पहले सिर पर पानी डालें फिर पूरे शरीर पर, ताकि सिर आदि शरीर के ऊपरी भागों की गर्मी पैरों से निकल जाय ।

‘गले से नीचे के शारीरिक भाग पर गर्म (गुनगुने) पानी से स्नान करने से शक्ति बढ़ती है, किंतु सिर पर गर्म पानी डालकर स्नान करने से बालों तथा नेत्रशक्ति को हानि पहुँचती है ।’ (बृहद वाग्भट, सूत्रस्थानः अ.3)

स्नान करते समय मुँह में पानी भरकर आँखों को पानी से भरे पात्र में डुबायें एवं उसी में थोड़ी देर पलके झपकायें या पटपटायें अथवा आँखों पर पानी के छींटे मारें। इससे नेत्रज्योति बढ़ती है ।

निर्वस्त्र होकर स्नान करना निर्लज्जता का द्योतक है तथा इससे जल देवता का निरादर भी होता है ।

किसी नदी, सरोवर, सागर, कुएँ, बावड़ी आदि में स्नान करते समय जल में ही मल-मूत्र का विसर्जन नही करना चाहिए । महत्वपूर्ण सूत्र :

महत्वपूर्ण सूत्र:  प्रतिदिन स्नान करने से पूर्व दोनों पैरों के अँगूठों में सरसों का शुद्ध तेल लगाने से वृद्धावस्था तक नेत्रों की ज्योति कमजोर नहीं होती । इसी तरह स्नान से पूर्व दोनों नासिकाओं के अग्रभाग और कानों के द्वार पर हल्का सा सरसों के तेल का स्पर्श करने से जीवन में कभी साइनस, थाइरोइड, और ENT के रोग नहीं होते और वृद्धावस्था में भी श्रवण क्षमता बनी रहती है।

स्नान के प्रकार – मन:शुद्धि के लिए

ब्रह्म स्नान : ब्राह्ममुहूर्त में ब्रह्म-परमात्मा का चिंतन करते हुए ।

देव स्नान : सूर्योदय के पूर्व देवनदियों में अथवा उनका स्मरण करते हुए ।

समयानुसार स्नान

ऋषि स्नान : आकाश में तारे दिखते हों तब ब्राह्ममुहूर्त में ।

मानव स्नान :सूर्योदय के पूर्व ।

दानव स्नान : सूर्योदय के बाद चाय-नाश्ता लेकर 8-9 बजे ।

करने योग्य स्नान : ब्रह्म स्नान एवं देव स्नान युक्त ऋषि स्नान ।

स्नान के अन्य नियम

रात्रि में या संध्या के समय स्नान न करें । ग्रहण के समय रात्रि में भी स्नान कर सकते हैं । स्नान के पश्चात तेल आदि की मालिश न करें । भीगे कपड़े न पहनें । (महाभारत, अनुशासन पर्व)

दौड़कर आने पर, पसीना निकलने पर तथा भोजन के तुरंत पहले तथा बाद में स्नान नहीं करना चाहिए । भोजन के तीन घंटे बाद स्नान कर सकते हैं ।

बुखार में एवं अतिसार (बार-बार दस्त लगने की बीमारी) में स्नान नहीं करना चाहिए ।

दूसरे के वस्त्र, तौलिये, साबुन और कंघी का उपयोग नहीं करना चाहिए ।

त्वचा की स्वच्छता के लिए साबुन की जगह उबटन का प्रयोग करें ।

स्नान करते समय कान में पानी न घुसे इसका ध्यान रखना चाहिए ।

स्नान के बाद मोटे तौलिये से पूरे शरीर को खूब रगड़-रगड़ कर पोंछना चाहिए तथा साफ, सूती, धुले हुए वस्त्र पहनने चाहिए । टेरीकॉट, पॉलिएस्टर आदि सिंथेटिक वस्त्र स्वास्थ्य के लिए अच्छे नहीं हैं ।

जिस कपड़े को पहन कर शौच जायें या हजामत बनवायें, उसे अवश्य धो डालें और स्नान कर लें ।

अंत में यह भी जान लीजिए कि न केवल आयुर्वेद की दृष्टि से, बल्कि ज्योतिष शास्त्र की गणना से भी स्नान की सही विधि से भाग्य का सम्बंध है। सही समय और विधि अनुसार स्नान के फल भाग्योदय के रूप में मिलते हैं। गलत विधि और गलत समय पर किये गए स्नान से शरीर के साथ साथ आर्थिक और सामाजिक यश की भी हानि होती है। अतः कठिनाइयों से बचने और भाग्य के निर्माण हेतु भी सही विधिपूर्वक स्नान करने के नियमों का पालन करना आवश्यक है और जीवन मे सफलता के लिए अपरिहार्य है।

  • डॉ स्वस्थ गुरु  Growth अनुमोदित शास्त्र सम्मत नियम

स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी और मार्गदर्शन हेतु स्वस्थ आरोग्य केंद्र से सम्पर्क कर सकते हैं : 7303730311 / 22 / 55 (स्वस्थ भारत अभियान)

ll जय जय राम ll

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button