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रामायण से पहलगाम तक (IAIT सीरीज)

रामायण से पहलगाम तक

आपको क्या लगता है कि ये इस्लामिक आतंकवादी राक्षस इसी भारत में इसी काल में पैदा हुए हैं और हम सनातनी इनकी जिहादी गतिविधियों को झेलने के लिए बने हैं? यदि ऐसी आपकी सोच है तो गलत है। आप सच्चे सनातनी हिन्दू नहीं हो सकते, आपके दिमाग में सेकुलरिज्म का कीड़ा कुलबुलाता रहता है।

रामायण काल से लेकर महाभारत और बाद में सही इतिहास का ज्ञान आपको विस्मृत करा दिया गया है। अस्तु, एक बार पुनः आपको स्मरण कराते हुए ये लघु लेख पढ़िए।

रामायण में आपको लगा होगा कि कैकयी ने सब ठीक कर दिया, योजना एक दम सही थी उसे लगा बस भरत आएगा और राज करेगा। दुनिया भर के साहित्यों में सौतेली माएं ये ही करती हैं तो उसने कुछ अलग नहीं किया।

अलग किया भरत ने, भरत अपनी मां से ही भिड़ गया और उसके बाद राम पादूका रखकर राज करना, 14 साल जमीन पर सोना…ये तो हद ही हो गई।

सामान्य लोग ऐसा करते हैं – नहीं

सारे महान भारतीय चरित्र ऐसे ही हैं

सत्यवादी राजा हरिशचंद्र को सपना आया और उसने अपना सारा राज्य दान कर दिया। क्या सपना आने पर कोई राज्य दान करता है? और फिर वो दिन भी आया जब उन्होंने अपनी पत्नी से अपने बच्चे का शव जलाने के लिये टैक्स लिया

युधिष्ठिर ने क्या किया…सब दांव पर लगाये, पत्नी भी लगा दी। अजीब बात ये नहीं है उन्होंने पत्नी लगाई, उस काल में अजीब तब होता जब वो नहीं लगाते।

तब इस पर बहस होती कि द्रौपदी को परिवार का सदस्य कभी माना ही नहीं इसलिये देखों सबको दांव पर लगाया उसे छोड़ दिया। तो युधिष्ठिर ने सबको लगाया उसे भी लगाया। सामान्य लोग क्या परिवार को दांव पर लगाते हैं?- नहीं

जरासंध से कृष्ण ने कहा कि किसी को भी चुन लो उसने अर्जुन या कृष्ण को छोड़कर भीम चुन लिया भीम ने फाड़कर रख दिया।

युधिष्ठिर ने दर्योधन से कहा कि किसी को भी चुन लो उसने युधिष्ठिर नहीं चुना जिसे मार कर युद्ध जीत सकता था उसने भीम चुना। भीम ने तोड़ दी जांघ

नॉर्मल लोग ऐसे काम करते हैं?- नहीं

हमारा सारा दर्शन ऐसा ही है इसलिये हमारा इतिहास और वर्तमान ऐसा है। कलियुग में तो हमारा इतिहास और भी विशिष्ट रहा।

सारे कलयुगी इतिहास में हमने विरोधी राजा हराये और छोड़ दिये, एक विरोधी राजा नहीं मारा । राणा सांगा ने दो दर्जन युद्ध जीते लेकिन 84 घाव खाकर भी हरा हरा कर छोड़ते रहे। कृष्णदेव राय ने दर्जनों बार सुल्तान हराये और हरा-हरा कर छोड़ते गए। राक्षस तांगड़ी में एक बार विजय नगर हारा पूरा नगर तबाह हो गया।

वहीं जो भी भारतीय राजा इन राक्षसों से हारा उसकी गर्दन कट गई दाहिर से लेकर भाऊ तक…

सतयुग व त्रेता युग में सात्विकता और द्वापर युग में इसके साथ राजसिकता के अंश धर्म में बचे थे इसलिए ऐसे चरित्र हुए।

हमारे सारे ग्रन्थ ऐसे हैं लेकिन कलयुग में तो ऐतिहासिक ग्रन्थों को ही हमसे दूर कर दिया गया इसलिये हम कलयुगीन व्यवहारिकता से दूर हैं। ऊपर से इस युग के इतिहास का सही ज्ञान भी विकृत कर दिया गया।

धर्म के नाम पर बंटवार हुआ उधर से हिन्दू गायब हो गए इधर दो दर्जन छोटे पाकिस्तान बनकर फिर तैयार हैं

92 हजार सैनिकों के बदले कश्मीर नहीं ले पाये और दूसरों के 92 हजार वापिस कर दिये उनकी जेलों में बंद अपने सैनिक वहीं सड़ने के लिए छोड़ दिये, ऐसी वैम्प को नायिका बनाकर महिमामण्डित किया गया। सोचिये पाकिस्तान के पास 92 हजार भारतीय सैनिक होते तो क्या होता?

जब एक फ्लाइट कब्जा कर दर्जन आतंकी छुटा लिये…

और जिस बांग्लादेश के लिये लड़े उसने 22 प्रतिशत हिन्दू 8% कर दिये और अब खुलेआम काटे जा रहे हैं

जिन सिखों और हिंदुओं को बंटवारे के बाद पाकिस्तान में रोककर धर्मांतरित या कत्ल कर दिया गया और जिन दलितों को लेकर जोगिंदर मंडल पाकिस्तान गया और वहाँ का लॉ मिनिस्टर बनकर भी बचा न सका…आज कितने हिन्दू बचे हैं जिहादियों की भूमि पर …?

अफगानिस्तान में कोई सिख हिन्दू बौद्ध बचा है क्या??

तो भैय्या, देखिये, समझिए और सोचिये जो महानता द्वापर में नहीं चली तो अब कैसे चलेगी..?

अस्तु, व्यवहारिक, तेज और नीतिसंपन्न बनिये

हम और महानता झेलने की स्थिति में हैं नहीं अब

वरना समुद्र ही है नीचे डूब मरने के लिए

जय जय राम जय हिन्दुराष्ट्रम

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