बिच्छू का डंक
- यह सिर्फ कहानी नहीं है। इसके बहुत मायने है । पूरा पढ़ें
एक नदी में बाढ़ आती है,
छोटे से टापू में पानी भर जाता है।
वहाँ रहने वाला सीधा साधा एक चूहा कछुवे से कहता है मित्र ! क्या तुम मुझे नदी पार करा सकते हो? मेरे बिल में पानी भर गया है! कछुवा राजी हो जाता है, और चूहे को अपनी पीठ पर बैठा लेता है,
तभी एक बिच्छू भी बिल से बाहर आता है, और कहता है मुझे भी पार जाना है। मुझे भी ले चलो। चूहा बोला मत बिठाओ, ये जहरीला है,ये मुझे काट लेगा।
तभी समय की गम्भीरता को भाँपकर
बिच्छू बड़ी विनम्रता से कसम खाकर प्रेम प्रदर्शित करते हुए कहता है भाई !कसम से नहीं काटूँगा, बस मुझे भी ले चलो।
कछुआ … चूहे और बिच्छू को लेकर
तैरने लगता है। तभी बीच रास्ते में बिच्छू चूहे को काट लेता है।
चूहा चिल्लाकर कछुवे से बोलता है
मित्र ! इसने मुझे काट लिया,
अब मैं नहीं बचूँगा।
थोड़ी देर बाद उस बिच्छू ने
कछुवे को भी डंक मार दिया।
कछुवा मजबूर था।
जब तक किनारे पहुँचता ….
चूहा मर चुका था।
कछुआ बोला
मैं तो मानवता से विवश था,
तुम्हें बीच में नहीं डुबोया,
मगर तुमने ….
मुझे क्यों काट लिया ?
बिच्छू उसकी पीठ से उतर कर
जाते-जाते बोला ~ मूर्ख !
तुम जानते नहीं,
मेरा तो मजहब ही है … डंक मारना।
जो शरण दे उसी के घर मे मकान दुकानों को आग लगाना।
हमारा इतिहास उठाकर देख लो… हमें जिसने शरण दी, हमने उसी देश को टुकड़े कर खंडहर बनाया।
गलती तुम्हारी है, जो तुमने मुझ पर ओर मेरी जहरीली कोम पर विश्वास किया।
सुधरना तुमको है, हमें नहीं । हमारी तो नस्ल, परवरिश, मजहब और शिक्षा सब कुछ स्पष्ट और जहरीली है।
*समझदार को इशारा काफी है।*
*लक्ष्य हमारा हिन्दुराष्ट्रम*
♨️ ऋषिश्री सन्देश ♨️