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थर्ड वर्ल्ड वॉर और थर्ड आई का दृष्टिकोण

तीसरा विश्वयुद्ध कौन जीतेगा?

थर्ड वर्ल्ड वॉर की सुगबुगाहट में थर्ड आई का दृष्टिकोण बहुत महत्वपूर्ण है।

यहाँ 3 आई है –  1. इजराइल 2. ईरान 3. इंडिया  इनमें दो आई सुलग रही हैं लेकिन उसकी आंच में सर्वाधिक तपिश तीसरी आई इंडिया को झेलनी पड़ रही है। कैसे? इसे अंत में पढ़िए। पहले दोनों आई के बीच की आग को जानिये :-

इजरायल जो कर रहा है वो वीरता तो है लेकिन उससे ज्यादा मज़बूरी है।
इज़राइल ईरान पर हमला करने का बस मौका ढुढ रहा था जो ईरान ने कल स्वयं उसे थाली में ले जाकर परोस दिया।
ईरान की इस हरकत से उसका बर्बाद हो जाना लगभग लगभग तय है।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि ईरानी जनता भी अब अंदर ही अंदर अपने शासक से और इस्लाम से मुक्ति पाना चाहती है।
कल को ईरान के अंदर उसकी जनता में असंतोष फुट पड़े और इजराइल के हमले शुरू होते ही उपद्रव शुरू हो जाए तो आप आश्चर्य मत किजिएगा।
ईरान के भीतर मोसाद की बहुत गहरी पैठ बन चुकी है और यह काम उसके लिए बहुत आसान काम है।
57 मुल्कों वाला गुब्बार फट चुका है।
यह सिर्फ ढोल ही साबित हुआ जितना बड़ा ढोल उतनी बड़ी पोल।
अब बस इस्राएल को दो ही तो काम करने है ….
एक ईरान के तेल डिपो को उड़ाना है और दूसरा उसके परमाणु संयंत्र को….
वैसे भी ईरान के अंदर मोसाद ने जो पैठ बनाई है उसके आधार पर यह दोनों काम चुटकी बजाते ही हो जाएंगे।
ईरान बाते कर रहा है कि सारे इस्लामिक देश एक साथ आ जाओ और इजरायल से लड़ो।
पर आप ही सोचिए कि लड़ेगा कौन?
क्योंकि…
पाकिस्तान मे अमेरिका परस्त सरकार बैठी है।
बांग्लादेश मे नहीं थी तो अब हो गयी और भारत की सरकार तो खुद इजरायल को हथियार भेज रही है।
जिन तीन देशो मे इस्लाम के 60 करोड़ मजदूर रहते है वो 60 करोड़ इस्लाम के नाम पर इस्राएल के खिलाफ सिवाय चीखने के और कुछ नहीं कर सकते।
बाकि
बचे 100 करोड़ तो उन मे से 25 करोड़ इंडोनेशिया मे है जिन्हे वैसे ही कोई लेना देना नहीं।
शेष 75 मे से 20 करोड़ पेट्रोल बेचकर खुश है।
बाकि मे से आधे अमेरिका यूरोप मे खुद भीख मांग रहे है
तो फिर बताईये कि लड़ने आएगा कौन?
ईरान खुद भूखा नंगा देश है, इनके पास एक इस्लामिक गार्डज नाम की आर्मी है लेकिन इस आर्मी का काम बस ये है की ईरान मे कोई महिला हिजाब ना पहने तो उसे गोली मारो।
सम्प्रति
कुल मिलाकर बात यह है कि ईरान एक बहुत बड़ी गलती कर चुका है।
और इस बार इस्राएल ने सारे विश्व से इस्लामिक आतंकवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने की कसम खाई है।
UNO के अधिकारी भी चिंता जता चुके है कि नेतन्याहू बहुत ही खतरनाक मुड में है वे किसी की भी नही सुन रहे है और उन पर कोई भी दबाव काम नही कर रहा है।
वैसे भी गोल्डा मेयर का एक बयान बहुत महत्वपूर्ण है।
इजरायल की पूर्व प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर कह चुकी है की इजरायल अहिंसा और पराजय झेल ही नहीं सकता, वो हमारे लिए कभी विकल्प हो ही नहीं सकते।
इजरायल शरणार्थीयों का देश है उनके पास जीतने के अलावा कोई विकल्प नहीं है इसलिए उनकी नीति हमेशा आक्रमक ही होगी।
आप यह मान सकते हो कि इस आतंकवाद से मुक्ति पाने का। इसमें बस बाधक है तो वह है जियो पॉलिटिक्स जिसे अमेरिका लीड कर रहा है।  वह इजरायल के माध्यम से एक तीर से इतने निशाने साध रहा है जिससे कि उसकी सुपरपॉवर की बादशाहत बरकरार रहे।

अमेरिका की दादागिरी को खतरा चीन, भारत और रूस से है और ईरान की जमीन इन तीनों को साधने के लिए सबसे ज्यादा अनुकूल है क्योंकि इन तीनों को घेरने के लिए अन्य देशों की डोर उसने पहले ही कसकर थाम ली है जैसे इराक, पाकिस्तान, बंगलादेश, अफगानिस्तान में अपनी कठपुतली सत्ता स्थापित करने के अलावा कई इस्लामिक देशों को कट्टर इस्लाम से अलग थलग कर चुका है। इसलिए अमरीका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रूपों में इस युद्ध की विभीषिका का सूत्रधार है।

ऐसे में भारत की स्थिति और भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि इस समय भारत की शक्ति हर क्षेत्र में तेजी से बढ़ रही है। आर्थिक रूप से सबसे तेज अर्थव्यवस्था दुनिया की मंदी की अर्थव्यवस्था के बीच भी समृद्धि की गाथा लिख रही है तो सामरिक रूप से हथियार निर्माण एवं तकनीकी विकास में नए अध्याय लिखे जा रहे हैं। वहीं कूटनीतिक दृष्टि से भारत के प्रधानमंत्री का कद अमेरिका के राष्ट्रपति से भी ऊंचा बन गया है कि अमेरिका के मित्र और शत्रु दोनों मोदीजी की सुनते हैं।

अमेरिका को धत्ता बताकर भारत रूस और ईरान से अमेरिकी प्रतिबंध के बावजूद धड़ल्ले से तेल लेकर यूरोप को बेच रहा है तो अमेरिका के दोस्त फ्रांस और ब्रिटेन भी भारत के साथ समझौते कर अपनी आर्थिक स्थिति को संभालने में लगे हैं। इजरायल भारत के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध बनाये हुए है और हथियारों का आदानप्रदान कर रहे हैं।

कुल मिलाकर, भारत आज दुनिया के हर मुद्दे और उद्देश्य की धुरी है। ऐसे में भारत को ईरान और इजरायल दोनों की आवश्यकता है। दोनो की वर्तमान सत्ता भारत के अनुकूल बनी हुई है। ऐसे में भारत किसका साथ दे? तटस्थ रहकर मूक दर्शक भी बने रहना भारत के लिए सम्भव नहीं है तो ऐसी स्थिति में भारत को चाहिये कि

1. इजरायल को कुछ दमदार हमले करने दे ताकि ईरान परस्त इस्लामिक आतंकवाद को मजा चखाया जाय जिससे वह खत्म हो जाय।

2. ईरान की आम जनता को न्यूनतम हानि हो और वहां सत्ता परिवर्तन में अमरीका की कठपुतली सरकार न बन पाए, इस दिशा में ईरान को सम्बल दे।

3. दोनों के युद्ध को सीमित करवाने में मध्यस्थ की भूमिका निभाए ताकि इसे तृतीय विश्वयुद्ध बनने से रोका जा सके। उस दिशा में रूस और अमेरिका दोनो से संयम बरतने की अपील की जाय।

4. इस लड़ाई से दुनिया को सन्देश यह निकले कि इस्लामिक कट्टरवाद जहाँ कहीं भी हो, उसे नेस्तनाबूद करने में दुनिया की सभी महाशक्तियां एकजुट होकर उसे नष्ट करें ताकि विश्व भर में शांति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त हो।

5. संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका और कद को अधिक व्यापक और तटस्थ बनाने में सभी देशों को सहमत और प्रतिबध्द करने का प्रस्ताव किया जाय ताकि भविष्य में दुनिया के खतरे पैदा करने वाले हर पहलू से कारगर ढंग से निपटा जा सके चाहे आतंकवाद हो, नशे का व्यापार हो, जल-विद्युत की कमी हो, जलवायु परिवर्तन का विषय हो या भुखमरी और गरीबी का उन्मूलन हो।

इन बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए क्या भारत की भूमिका आज के हालात में अत्यधिक महत्वपूर्ण नहीं है?

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