वरद वाणीसत्संग स्वाध्यायहिंदुत्व

नवमी शक्ति सिद्धिदात्री

नवरात्र का कैसे समापन करें?

शारदीय नवरात्र पर्व के समापन के दिवस पर

`सभी प्रकार की सिद्धियां देने वाली मां सिद्धिदात्री…`

मां दुर्गाजी की नौवीं शक्तिनवरात्र का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्रि-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है।

मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व- ये आठ सिद्धियां होती हैं।

ब्रह्मवैवर्तपुराण के श्रीकृष्ण जन्म खंड में यह संख्या अठारह बताई गई है।

इनके नाम इस प्रकार हैं –

1. अणिमा 2. लघिमा 3. प्राप्ति 4. प्राकाम्य 5. महिमा 6. ईशित्व,वाशित्व 7. सर्वकामावसायिता 8. सर्वज्ञत्व 9. दूरश्रवण 10. परकायप्रवेशन 11. वाक्‌सिद्धि 12. कल्पवृक्षत्व 13. सृष्टि 14. संहारकरणसामर्थ्य 15. अमरत्व 16. सर्वन्यायकत्व 17. भावना 18. सिद्धि

मां सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं। देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वे लोक में ‘अर्द्धनारीश्वर’ नाम से प्रसिद्ध हुए।

मां सिद्धिदात्री का स्वरूप चार भुजाओं वा इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में कमलपुष्प है। प्रत्येक मनुष्य का यह कर्तव्य है कि वह मां सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त करने का निरंतर प्रयत्न करें। उनकी आराधना की ओर अग्रसर हो। इनकी कृपा से अनंत दुख रूप संसार से निर्लिप्त रहकर सारे सुखों का भोग करता हुआ वह मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।

नवदुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अंतिम हैं। अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा उपासना शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार करते हुए भक्त दुर्गा पूजा के नौवें दिन इनकी उपासना में प्रवत्त होते हैं। इन सिद्धिदात्री मां की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक, पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। जो नवरात्र के पूरे नौ दिवस में से सभी दिवसों को दुर्गा उपासना, उपवास न कर सके वे यदि प्रथम दिवस शैलपुत्री और इस अंतिम दिवस माँ सिद्धिदात्री
का पूजन, आराधन और उपवास भी कर ले तो उसे नवरात्रि के सभी नौ दिवसों की शक्तियों का फल मिल जाता है, ऐसा विश्वास रखें।

सिद्धिदात्री मां के कृपापात्र भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है, जिसे वह पूर्ण करना चाहे। वह सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं और स्पृहाओं से ऊपर उठकर मानसिक रूप से मां भगवती के दिव्य लोकों में विचरण करता हुआ उनके कृपा-रस-पीयूष का निरंतर पान करता हुआ, विषय-भोग-शून्य हो जाता है। मां भगवती का परम सान्निध्य ही उसका सर्वस्व हो जाता है। इस परम पद को पाने के बाद उसे अन्य किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं रह जाती।

कैसे करें माँ सिद्धिदात्री को प्रसन्न : आठ दिवस आपने शारदीय नवरात्र में माँ दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की आराधना उपासना अपनी सामर्थ्य और ज्ञानानुसार की है। अपनी क्षमतानुसार उपवास व्रत पाठ आदि भी किये हैं। अब माता के प्रस्थान अर्थात इस नवरात्र पूजन की पूर्णाहुति का समय आ गया है। नौवें दिवस पर माता के सिद्धिदात्री रूप का पूजन, ज्योत आदि करने हैं । इसके साथ रक अनुष्ठान – यज्ञ, हवन अवश्य करें चाहे लघु रूप में हो या विस्तृत रूप से। ततपश्चात नौ कन्याओं को मिष्ठान आदि भोजन करवाएं। यदि नौ कन्याएं उपलब्ध न हो सके तो नौ पात्रों में भोजन परोसकर जितनी कन्याएं मिल सकें उन्हें घर पर भोजन कराएं, शेष पात्र देवी माता के मंदिर में भिजवा देवें ताकि मंदिर के पुजारी कन्याओं को दे सकें अथवा माता को भोग लगाकर किसी को भी प्रसाद रूप में बांट दें। उसके बाद अपना व्रत पारायण हेतु माता की अनुमति लेकर स्वयं परिवार सहित भोजन प्रसाद ग्रहण करें।

  1. अंत में माँ के चरणों में कुछ समय बैठकर चुपचाप चिंतन और विचार करें कि इस नवरात्र में हमने क्या सत्कर्म किये, क्या त्रुटियां हुई और कैसे उनका सुधार करें। माँ से सभी भूलों और गलतियों के लिए क्षमा मांगते हुए उनकी और अधिक भक्ति और उपासना करने की शक्ति का आशीर्वाद लेवें। माँ का यह  सान्निध्य प्राप्त करने के लिए हमें निरंतर नियमनिष्ठ रहकर अपनी कुलदेवी को माँ का ही स्वरूप मानकर उनकी उपासना करनी चाहिए। मां भगवती का स्मरण, ध्यान, पूजन हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हुए वास्तविक परम शांतिदायक अमृत पद की ओर ले जाने वाला है।इनकी आराधना से जातक को अणिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता, दूर श्रवण, परकामा प्रवेश, वाकसिद्ध, अमरत्व भावना सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों नव निधियों की प्राप्ति होती है। आज के युग में इतना कठिन तप तो कोई नहीं कर सकता लेकिन अपनी शक्तिनुसार जप, तप, पूजा-अर्चना कर कुछ तो मां की कृपा का पात्र बनता ही है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। मां जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में नवमी के दिन इसका जाप करना चाहिए।या देवी सर्वभू‍तेषु सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

    अर्थ : हे मां! सर्वत्र विराजमान और मां सिद्धिदात्री के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे मां, मुझे अपनी कृपा का पात्र बनाओ।

जय मां सिद्धिदात्री

️सभी सनातनियों को यह नवरात्र का उत्सव देवी भगवती माँ के सभी शक्ति स्वरूपों का आशीर्वाद प्रदान कर इतना शक्तिशाली बनाये कि आज संसार मे व्याप्त विधर्मियों और जिहादियों के आतंक को समाप्त कर भारतवर्ष को सुपरपॉवर बनाने के सामर्थ्य में जुट जाएं और सर्वत्र सुख शांति और स्वास्थ्य समृद्धि का वातावरण स्थापित करें।

अस्तु,

इस लेख के प्रायोजक विश्वप्रथम रामशक्ति पीठ के पीठाधीश्वर ऋषिश्री वरदानंद जी महाराज सभी को नवरात्रि समापन और विजयादशमी की शुभकामनाएं और आशीर्वाद प्रेषित करते हैं

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया ।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित दुःख भागभवेत ।

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