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शारदीय नवरात्र के शुभ नौ दिन

आज से नवरात्रि का शुभ संयोग

शारदीय नवरात्र के शुभ नौ दिन

हिंदू धर्म में नवरात्र की अवधि पूर्ण रूप से मां दुर्गा के 9 स्वरूपों के लिए समर्पित मानी जाती है। नवरात्र को लेकर यह माना जाता है कि इस अवधि में माता रानी का धरती पर आगमन होता है और वह अपने भक्तों का उद्धार करती हैं। इस दौरान साधक माता रानी के नौ स्वरूपों की भक्ति-भावना के साथ पूजा-अर्चना कर उनकी कृपा प्राप्त करता है।

हिंदू पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्र के पावन पर्व की शुरुआत 03 अक्टूबर से हो रही है। नवरात्र के दौरान अलग-अलग दिन मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करने का विधान है। नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है। इसके बाद मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की विधिपूर्वक उपासना की जाती है। साथ ही व्रत रखने का भी विधान है।

शारदीय नवरात्र की उपासना की शुरुआत कलश स्थापना के साथ करनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि कलश स्थापना न करने से पूजा अधूरी रहती है। आइए इस लेख में हम आपको बताएंगे कलश स्थापना के शुभ मुहूर्त से लेकर नौ स्वरूपों का परिचय, पूजा विधि, प्रिय भोग, मंत्र और उपवास आदि के बारे में।

नवरात्र तिथि का आरंभ

पंचांग के अनुसार, शारदीय नवरात्र की शुरुआत 03 अक्टूबर को देर रात 12 बजकर 18 मिनट से शुरू हुई। वहीं, इस तिथि का समापन 04 अक्टूबर को देर रात 02 बजकर 58 मिनट पर होगा। सनातन धर्म में सूर्योदय से तिथि की गणना की जाती है। ऐसे में 03 अक्टूबर से शारदीय नवरात्र की शुरुआत है।

हस्त नक्षत्र और इंद्र योग के संयोग में शारदीय नवरात्र 3 अक्टूबर दिन गुरुवार से शुरू हो रहे हैं। इस बार नवरात्र 3 से लेकर 11 अक्टूबर तक है और 12 अक्टूबर को दशहरा मनाया जाएगा। आदि शक्ति नवरात्र में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की नौ दिन अलग-अलग पूजा होती है। इस दौरान भक्त अपनी सामर्थ्य के अनुसार व्रत रखकर देवी की पूजा करते हैं।

इस साल मां दुर्गा का आगमन और प्रस्थान दोनों ही कष्टकारी माना जा रहा है। देवी भगवती इस साल डोली पर सवार होकर आएंगी और हाथी पर प्रस्थान करेंगी। मान्यता है कि जिस वर्ष माता का डोली पर आगमन होता है, उस वर्ष देश में रोग, शोक और प्राकृतिक आपदा आती है। वहीं, हाथी पर प्रस्थान अत्यधिक वर्षा का संकेत माना जाता है। साथ ही हिंसा और युद्ध की वृद्धि का सूचक है यह संयोग।

शास्त्रों में बताया गया है कि 9 दिन पूरे परिवार के साथ विधि विधान से मां दुर्गा की पूजा अर्चना करने से इन विपत्तियों से संरक्षण मिलता है, धन धान्य की कमी नहीं होती और मां दुर्गा का परिवार पर आशीर्वाद बना रहता है।

घटस्थापना का मुहूर्त

शारदीय नवरात्र की प्रतिपदा तिथि पर घटस्थापना मुहूर्त सुबह 06 बजकर 15 मिनट से लेकर सुबह 07 बजकर 22 मिनट तक है। वहीं, अभिजीत मुहूर्त (Shardiya Navratri 2024 Shubh Muhurat) सुबह 11 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 33 मिनट तक है। इन योग समय में घटस्थापना कर मां भवानी की पूजा कर सकते हैं।

महावीर पंचांग के अनुसार इस बार चतुर्थी तिथि की वृद्धि होने से यह तिथि दो दिन 6 और 7 अक्टूबर को मनाई जाएगी। वहीं नवमी तिथि का क्षय होने पर महाअष्टमी और महानवमी का व्रत 11 अक्टूबर को रखा जाएगा। नवरात्र की प्रत्येक तिथि एक विशिष्ट देवी को समर्पित होता है। अंततः नवरात्र नौ दिनों की है।

किस दिन किसकी पूजा
3 अक्टूबर को प्रतिपदा पर माता शैलपुत्री
4 अक्टूबर को द्वितीया पर ब्रह्मचारिणी
5 अक्टूबर को तृतीया पर चंद्रघंटा का पूजन
6 व 7 अक्टूबर को चतुर्थी पर माता कुष्मांडा का पूजन
8 अक्टूबर को पंचमी तिथि पर स्कंदमाता का पूजन
9 अक्टूबर को षष्ठी तिथि पर मां कात्यायनी का पूजन
10 अक्टूबर को सप्तमी तिथि पर माता कालरात्रि का पूजन
11 अक्टूबर को अष्टमी और नवमी दोनों पर माता महागौरी व सिद्धिदात्री का पूजन किया जाएगा।

9 देवियों का परिचय, उनके प्रिय रंग

नवरात्र का उत्सव, व्रत, त्यौहार सनातन संस्कृति में विशिष्ट स्थान रखता है। यह देवी माँ के उन नौ स्वरूपों की आराधना का पर्व है जिसमें देवी के बचपन के स्वरूप शिशु कन्या से लेकर वरदात्री माँ पूर्ण पारब्रह्म स्वरूप की पूजा अर्चना का विधान है। इसी आधार पर देवी मां के नौ स्वरूपों के नाम निर्धारित हैं।

शैलपुत्रीः पर्वतराज हिमालय की पुत्री, देवी शैलपुत्री नवरात्रि के पहले दिन पूजी जाती हैं। इनको सफेद रंग बहुत प्रिय है और मां शांति और पवित्रता का प्रतीक हैं।

ब्रह्मचारिणीः देवी ब्रह्मचारिणी तपस्या और साधना की देवी हैं। इस दिन पीले रंग का महत्व है, देवी सुख और समृद्धि देने वाली हैं।

चंद्रघंटाः देवी चंद्रघंटा शांति और साहस की देवी मानी जाती हैं। तीसरे दिन के लिए हरा रंग शुभ माना जाता है।

कुष्मांडा: देवी कुष्मांडा ब्रह्मांड को रचने वाली देवी मानी गईं हैं। इस दिन का रंग नारंगी है, जो ऊर्जा और उत्साह का प्रतीक होता है।

स्कंदमाताः देवी भगवान कार्तिकेय की माता, शांति और भक्ति की देवी मानी जाती हैं। यह दिन सफेद रंग को समर्पित है।

कात्यायनीः देवी कात्यायनी शक्ति और साहस की प्रतीक हैं। छठे दिन के लिए लाल रंग शुभ माना जाता है।

कालरात्रिः देवी कालरात्रि बुराई का नाश करने वाली देवी मानी जाती हैं। इस दिन का रंग नीला है, जो शत्रुओं का नाश करने का प्रतीक है।

महागौरीः देवी महागौरी पवित्रता और शांति की देवी हैं। इस दिन का रंग गुलाबी है, जो प्रेम और भक्ति का प्रतीक है।

सिद्धिदात्रीः देवी सिद्धिदात्री सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली देवी मानी जाती हैं। नवमी के दिन बैंगनी रंग को शुभ माना जाता है।

03 अक्टूबर को शारदीय नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि है। इस दिन मां शैलपुत्री स्वरूप की पूजा की जाती है। इसके साथ शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना की जाती है।

हिंदू धर्म में नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा-अर्चना विशेष फलदायी मानी जाती है। प्रत्येक वर्ष 4 नवरात्रि आती है। जिसमे दो गुप्त नवरात्रि, चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि शामिल हैं।

इस वर्ष उदयातिथि के अनुसार, 03 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हुई है। वहीं, 12 अक्टूबर को इसका समापन होगा।

इस साल मां दुर्गा का आगमन और प्रस्थान दोनों ही कष्टकारी माना जा रहा है। देवी भगवती इस साल डोली पर सवार होकर आएंगी और हाथी पर प्रस्थान करेंगी। मान्यता है कि जिस वर्ष माता का डोली पर आगमन होता है, उस वर्ष देश में रोग, शोक और प्राकृतिक आपदा आती है। वहीं, हाथी पर प्रस्थान अत्यधिक वर्षा का संकेत माना जाता है। आइए जानते हैं कलश स्थापना का मुहूर्त,सामग्री और विधि..

कलश स्थापना का मुहूर्त : शारदीय नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है। इस साल 03 अक्टूबर को सुबह 06 बजकर 07 मिनट से लेकर सुबह 9 बजकर 30 मिनट तक कलश स्थापाना का मुहूर्त है। इसके बाद सुबह 11 बजकर 37 मिनट से लेकर 12 बजकर 23 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त में कलश स्थापित किया जा सकता है।

कलश स्थापना सामग्री : हिंदू धर्म में सभी मांगलिक कार्यों में कलश स्थापित करना महत्वपूर्ण माना गया है। इसे सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य का प्रतीक माना गया है। नवरात्रि में कलश स्थापना के लिए कलश में जल, पान का पत्ता, अक्षत,कुमकुम,आम का पत्ता, मोली, रोली केसर,दूर्वा-कुश, सुपारी, फूल, सूत, नारियल,अनाज,लाल कपड़ा, ज्वारे, 1-2 रुपए का सिक्का इत्यादि का उपयोग किया जाता है।

कलश स्थापना की विधि :
नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करते समय सबसे पहले सभी देवी-देवताओं का आह्वान करें।

एक मिट्टी के बड़े पात्र में मिट्टी डाल दें और इसमें ज्वारे के बीज डालें। उसके बाद सारी मिट्टी और बीज डालकर पात्र में थोड़ा-सा पानी छिड़क दें।

अब गंगाजल भरे कलश और ज्वारे के पात्र पर मौली बांध दें। जल में सुपारी,दूर्वा घास, अक्षत और सिक्का भी डाल दें।

अब कलश के किनारों पर आम के 5 पत्तों को रखें और कलश का ढक्कन से ढक दें।

एक नारियल लें और उसपर लाल कपड़ा या चुनरी लपेट दें। नारियल पर मौली बांध दें।

इसके बाद कलश और ज्वारे स्थापित करने के लिए सबसे पहले जमीन को अच्छे से साफ कर लें।

इसके बाद ज्वारे वाला पात्र रखें। उसके ऊपर कलश स्थापित करें और फिर कलश के ढक्कन पर नारियल रख दें।

फिर सभी देवी-देवताओं का आह्मान करने के साथ नवरात्रि की विधिवत पूजा आरंभ करें।

कलश स्थापित करने के बाद नौ दिनों तक मंदिर में रखे रहना चाहिए।सुबह-शाम आवश्यकतानुसार पानी डालते रहें।

यदि आपने नौ दिवस तक घर में अखंड ज्योत प्रज्वलित की हैं तो विशेष ध्यान रखें कि ज्योत अनवरत जलती रहे। इस दौरान घर में कोई न कोई उपस्थित रहना चाहिए अर्थात घर को सूना न छोड़े।

पूजा की विधि
जैसा कि ऊपर बताया है कि नवरात्रि की शुरुआत में घर या मंदिर में कलश स्थापना करें।
मां दुर्गा का आह्वान करें और उनको धूप, दीप, अक्षत, पुष्प और प्रसाद अर्पित करें।
नारियल, शृंगार और चुनरी मां को अत्यंत प्रिय है, उन्हें अर्पित करें।

चूंकि नवरात्र का प्रारम्भ जगदम्बे भवानी के स्वरूप शैलपुत्री के रूप में पूजा करने से होता है तो भवानी मां की पूजा घटस्थापना के बाद माँ शैलपुत्री के प्रिय फूल, भोग व मंत्र के साथ करनी चाहिए।

मान्यता है कि मां शैलपुत्री को गुड़हल का लाल फूल और सफेद कनेर का फूल प्रिय हैं। पूजा थाली में इन फूलों को जरूर शामिल करें।

सच्चे मन से मां शैलपुत्री की पूजा करें और इसके बाद उन्हें रबड़ी, फल और मिठाई का भोग लगाएं। ऐसा माना जाता है कि इन चीजों का भोग लगाने से मां शैलपुत्री प्रसन्न होती हैं और जातक को सुख-शांति की प्राप्ति होती है।

मां शैलपुत्री मंत्र

ऊँ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

इसके साथ ही सप्तश्लोकी दुर्गा के सातों मंत्रों का उच्चारण करते हुए प्रतिदिन गोमय गोबर के कंडे पर शुद्ध देशी घी की आहुति के साथ माता को ज्योत लें । ततपश्चात आरती करें।

आरती के पश्चात शुद्ध भाव सच्चे मन के साथ करबद्ध होकर माँ से नौ विभूतिरूपों का आशीर्वाद इस मंत्र के साथ मांगते हुए उन्हें नौ बार नमस्कार करें।
या देवी सर्वभू‍तेषु दया रूपेण संस्थित।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

इस मंत्र में शेष आठ नमस्कार में “दया रूपेण” के स्थान पर निम्न रूपों की विभूतियों का उच्चारण क्रमशः करें
2.मातृ रूपेण
3.बुद्धि रूपेण
4.लक्ष्मी रूपेण
5.शक्ति रूपेण
6.सफला रूपेण
7.सुखशांति रूपेण
8.सौम्य रूपेण
9.कल्याण रूपेण

तदनन्तर ज्योत को स्पर्श कर माता को दण्डवत नमन करें और फलाहार, सूखे मेवे आदि का प्रसाद वितरित करें ।

  1. नवरात्र में स्वाध्याय हेतु दुर्गा सप्तशती, देवी महात्म्य, और गायत्री चालीसा का पाठ करने का विशिष्ट विधान है। कहीं कहीं पर शतचंडी महायज्ञ भी किये जाते है। सामर्थ्यवान महाजन श्रीमद देवी भागवत महापुराण का पाठ का आयोजन भी कराते हैं।

अगर मंत्र जाप का कोई संकल्प लिया है तो रोजाना संकल्पित जाप करें।

नौ दिवस में प्रत्येक दिवस देवी माँ के अलग अलग स्वरूपों की पूजा अर्चना करते हुए अष्टमी की रात्रि को हवन और नवमी की माता की कढ़ाई का महाप्रसाद का भोग लगाकर नौ कुंआरी कन्याओं को भोजन कराकर इस उत्सव की पूर्णाहुति करनी चाहिए।

नवरात्र में उपवास रखने का बड़ा वैज्ञानिक महत्व है जो संकल्प शक्ति में वृद्धि करके विजयश्री दिलाने वाला है जैसे प्रभु श्री राम ने देवी माँ की उपासना और व्रत रखकर रावण पर विजय प्राप्त करके दिखाया । इसीलिए इस नवरात्र के समापन के साथ अगले दिन विजयादशमी का उत्सव मनाया जाता है।

हमारे देश के प्रिय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी हर नवरात्र में नौ दिन निराहार रहकर सिर्फ जल व निम्बू रस पीकर उपवास रखते हैं और अपनी संकल्प शक्ति में वृद्धि कर भारत माता की अनवरत सेवा करते आ रहे हैं।

आप भी अपनी सामर्थ्य के अनुसार नवरात्रि में उपवास रख सकते हैं। यदि कोई नौ दिवस उपवास न रख सके तो प्रथम दिवस और अंतिम दिवस का उपवास रखकर भी देवी भवानी माँ की कृपा और आशीर्वाद पा सकते हैं।

नवमी के दिन कन्या भोजन और इनका सत्कार सम्मान पूजन कर विदा करने के पश्चात ही अपना उपवास तोड़ना श्रेयस्कर होता है।

आप सबको शारदीय नवरात्र की अनंत शुभकामनाएं और देवी माँ से करबद्ध प्रार्थना करते हैं कि आप सब पर सपरिवार माता की कृपा बरसती रहे और आपको व आपके परिवार को सुख, शांति, समृद्धि, सफलता और विजय का आशीर्वाद दें।

ऋषिश्री वरदानंद महाराज
विश्वप्रथम रामशक्ति पीठाधीश्वर
ऋषिकेष, चित्रकूट, नवी मुंबई

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