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जिहादी यानी नफरती !!!

मारनेवालों के
नाम बदले।
चेहरे बदले।
जगहें बदलीं।
लाशें बदलीं।
लाशों के रंग बदले

कभी कश्मीर
कभी मुंबई,
कभी पॅरिस
कभी न्यूयॉर्क
कभी जेरूसलेम
कभी माद्रीद
कभी लंदन
कभी बाली
कभी बैंकाक

कभी ट्रेन,
कभी मंदिर,
कभी सिनेगॉग
कभी बीच
कभी पहाड़
कभी होटल,
कभी ऑफिस

मरने वाले हर बार अलग थे—
हिंदू, यहूदी, ईसाई,
पर मारनेवाले?
उनकी तो सोच एकही है
बारासौ सालसे
एक ही नारा,
एक ही किताब से निकली
एक ही नफ़रत!

इसे पागलपन मत कहो।
इसे संयोग मत कहो।
इसे हादसा भी मत कहो

यह एक सोच है।
यह एक सिद्धांत है।
यह वह विचारधारा है
जो कसाईनुमा कत्ल को
जन्नत बक्श देती है

इनके नाम बदलते हैं,
चेहरे बदलते हैं,
इनकी नफरत के शिकार
पीड़ित बदलते हैं

#नफ़रती नहीं बदलते।

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