आज की कहानीऋषिश्री सन्देशवरदवाणी - सुविचार

प्रारब्ध के प्रकार – इस कहानी में

प्रारब्ध किसे कहते हैं ?

पिछले जन्मों के कर्मो के संस्कार जिनका फल भुगतना शेष रह जाता है, उन्हें वर्तमान जन्म में भुगतना होता है। ये प्रारब्ध कर्म की तीव्रता के अनुसार तीन प्रकार के होते हैं। इन्हीं के कारण मनुष्य को वर्तमान जीवन में सुख दुःख भोगने पड़ते हैं जो इस जन्म में अच्छे बुरे कर्मों के साथ जुड़कर अंतिम परिणाम देते हैं।

कर्म सिद्धांत के अनुसार, प्रारब्ध पिछले कर्मों के फल का वह भाग है जो वर्तमान में भोगने के लिए निश्चित है, यानी भाग्य या नियति 

  • संक्षिप्त में:

    प्रारब्ध, संचित कर्मों (accumulated actions) का वह भाग है जो वर्तमान जीवन में भोगने के लिए परिपक्व हो जाता है. 

  • व्यापक अर्थ:

    प्रारब्ध का अर्थ है, किसी व्यक्ति के जीवन में कर्म एक अनिवार्य हिस्सा है और यह भोगने के लिए निश्चित है. 

  • उदाहरण:

    प्रारब्ध के अनुसार, व्यक्ति का अमीर या गरीब होना, उसकी जाति, आयु और भोग का निर्धारण होता है. 

  • कर्म और प्रारब्ध:

    प्रारब्ध कर्मों के प्रभावों को समाप्त करने के लिए सही कर्म करके इसे टाला या बदला जा सकता है. 

  • अन्य नाम:

    इसे भाग्य या नियति के रूप में भी जाना जाता है. 

  • प्रारब्ध और पुरुषार्थ:
    प्रारब्ध और पुरुषार्थ दोनों की ही अपनी-अपनी महत्ता है, प्रारब्ध के बगैर पुरुषार्थ अधूरा है और पुरुषार्थ के बगैर प्रारब्ध. 
    जैसा प्रारम्भ में बताया गया है कि प्रारम्भ अपनी गति व तीव्रता के अनुसार तीन प्रकार के होते हैं, यह पुरुषार्थ से भिन्न है और हर हालत में भुगतने होते हैं।

एक कहानी के माध्यम से इन तीनों प्रकार के प्रारब्ध व उसके प्रभावों को समझते हैं

एक व्यक्ति हमेशा ईश्वर के नाम का जाप किया करता था । धीरे धीरे वह काफी बुजुर्ग हो चला था इसीलिए एक कमरे मे ही पड़ा रहता था ।

जब भी उसे शौच; स्नान आदि के लिये जाना होता था; वह अपने बेटो को आवाज लगाता था और बेटे ले जाते थे ।

धीरे धीरे कुछ दिन बाद बेटे कई बार आवाज लगाने के बाद भी कभी कभी आते और देर रात तो नहीं भी आते थे।इस दौरान वे कभी-कभी गंदे बिस्तर पर ही रात बिता दिया करते थे

अब और ज्यादा बुढ़ापा होने के कारण उन्हें कम दिखाई देने लगा था एक दिन रात को निवृत्त होने के लिये जैसे ही उन्होंने आवाज लगायी, तुरन्त एक लड़का आता है और बडे ही कोमल स्पर्श के साथ उनको निवृत्त करवा कर बिस्तर पर लेटा जाता है । अब ये रोज का नियम हो गया ।

एक रात उनको शक हो जाता है कि, पहले तो बेटों को रात में कई बार आवाज लगाने पर भी नही आते थे। लेकिन ये तो आवाज लगाते ही दूसरे क्षण आ जाता है और बडे कोमल स्पर्श से सब निवृत्त करवा देता है ।

एक रात वह व्यक्ति उसका हाथ पकड लेता है और पूछता है कि सच बता तू कौन है ? मेरे बेटे तो ऐसे नही हैं ।

अभी अंधेरे कमरे में एक अलौकिक उजाला हुआऔर उस लड़के रूपी ईश्वर ने अपना वास्तविक रूप दिखाया।

वह व्यक्ति रोते हुये कहता है : हे प्रभु आप स्वयं मेरे निवृत्ती के कार्य कर रहे है । यदि मुझसे इतने प्रसन्न हो तो मुक्ति ही दे दो ना ।

प्रभु कहते है कि जो आप भुगत रहे है वो आपके प्रारब्ध है । आप मेरे सच्चे साधक है; हर समय मेरा नाम जप करते है इसलिये मै आपके प्रारब्ध भी आपकी सच्ची साधना के कारण स्वयं कटवा रहा हूँ ।

व्यक्ति कहता है कि क्या मेरे प्रारब्ध आपकी कृपा से भी बडे है; क्या आपकी कृपा, मेरे प्रारब्ध नही काट सकती है ।

प्रभु कहते है कि, मेरी कृपा सर्वोपरि है; ये अवश्य आपके प्रारब्ध काट सकती है; लेकिन फिर अगले जन्म मे आपको ये प्रारब्ध भुगतने फिर से आना होगा । यही कर्म नियम है । इसलिए आपके प्रारब्ध मैं स्वयं अपने हाथो से कटवा कर इस जन्म-मरण से आपको मुक्ति देना चाहता हूँ ।

ईश्वर कहते है: *प्रारब्ध तीन तरह* के होते है :

*मन्द*,
*तीव्र*, तथा
*तीव्रतम*

*मन्द प्रारब्ध* मेरा नाम जपने से कट जाते है ।

*तीव्र प्रारब्ध* किसी सच्चे संत का संग करके श्रद्धा और विश्वास से मेरा नाम जपने पर कट जाते है । पर *तीव्रतम प्रारब्ध* भुगतने ही पडते है।

लेकिन जो हर समय श्रद्धा और विश्वास से मुझे जपते हैं; उनके प्रारब्ध मैं स्वयं साथ रहकर कटवाता हूँ और तीव्रता का अहसास नहीं होने देता हूँ ।

!! जय जय राम !! 

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