युध्द होगा या नहीं (IAIT सीरीज)
पहलगाम के प्रतिकारस्वरूप पाकिस्तान से युध्द होगा या नहीं होगा, यह एक यक्ष प्रश्न बनकर सभी के दिलोदिमाग पर छाया हुआ है। इस बात का उत्तर जानने से पहले ये कहानी पढिये। इसी में उत्तर छुपा है।
एक बार एक फैक्ट्री की मुख्य मशीन खराब हो गई.
अब चूँकि, मुख्य मशीन ही खराब हो गई तो उत्पादन ठप पड़ गया जिससे कि फैक्ट्री में हंगामा हो गया क्योंकि फैक्ट्री के सारे वर्कर बैठ गए थे.
आनन-फानन में फैक्ट्री मालिक को सूचित किया गया.
अनेक मिस्त्री तथा इंजीनियर आये परंतु वे लाख प्रयासों के बाद भी मशीन को ठीक नहीं कर पाए.
फिर , किसी ने फैक्ट्री मालिक को एक माहिर मैकेनिक के बारे में बताया कि वो बहुत बेहतरीन मैकेनिक है और वो हमारे मशीन को जरूर ठीक कर देगा.
फिर क्या था…
फैक्ट्री मालिक ने उस मैकेनिक को कॉल किया और अपना एक आदमी उसे लिवाने भेज दिया.
थोड़ी ही देर में वो मैकेनिक भी आ गया.
आने के बाद मैकनिक ने कुछ नहीं किया बल्कि सिर्फ घूम घूम कर मशीन के हर पार्ट्स को ध्यान से देखने लगा.
इसी में लगभग घंटे-डेढ़ घंटे गुजर गये और फैक्ट्री के लोग अधीर होने लगे.
यहाँ तक कि फैक्ट्री के कुछेक वर्कर्स में कानाफूसी भी होने लगी कि… ये किसको उठा लाये यार.
साले को आता-जाता कुछ नहीं है.
तभी ये तो ये मशीन ठीक करने का कोई उपक्रम नहीं कर रहा है.
लेकिन, वो मैकनिक शांति से करीब 2 घंटे तक मशीन के हर पॉट्स को बारीकी से देखता रहा और अंत में अपने बैग से एक स्क्रू निकाल कर एक जगह टाइट कर दिया.
स्क्रू टाइट होते ही मशीन ठीक हो गई और फर्स्ट क्लास काम करने लगी.
इससे फैक्ट्री मालिक समेत सारे वर्कर्स में खुशी की लहर दौड़ गई.
खैर, चूँकि अब मशीन ठीक हो चुकी थी तो फैक्ट्री मालिक ने #मैकनिक_से_चार्ज पूछा.
जिस पर उस मैकेनिक ने 5000 चार्ज बताया.
चार्ज सुनते ही फैक्ट्री मालिक ने आश्चर्य से मुँह खोलते हुए कहा : सिर्फ एक छोटा सा स्क्रू टाइट करने के 5000 रुपये ?
ये कुछ ज्यादा नहीं है ???
इस पर मैकनिक ने बहुत ही सौम्यता से जबाब दिया : जी नहीं.
स्क्रू टाइट करने के चार्ज तो सिर्फ 20 रुपये ही हैं.
बाकी, 4980 रुपया चार्ज इस जानकारी के हैं कि… स्क्रू कहाँ और कितना टाइट करना है.
इसी कहानी में सारा सार है.
हम सब जानते हैं कि… भारत में कटेशर, अर्बन नक्सल और जीज आदि बड़ी समस्या है और उनका स्क्रू टाइट होना ही चाहिए.
लेकिन, हम ये नहीं जानते हैं कि वो स्क्रू किस साइज का होना चाहिए, किस समय टाइट किया जाना चाहिए और कितने दबाब के साथ.
लेकिन, वे जानते हैं….
क्योंकि, उनके पास उपलब्ध राज्यसभा सीट, इंटरनेशल प्रेशर, देश के अंदर फ्रिंज एलीमेंट की तैयारी, उपद्रव की गुप्त सूचना आदि ढेरों इनपुट होते हैं.
जबकि, हम अपनी जानकारी के लिए सिर्फ कुछेक पेपर कटिंग और आलतू-फालतू से यू ट्यूब लिंक पर निर्भर हैं.
इसीलिए, मुझे हमेशा से लगता है कि….जिसके पास विगत 15 सालों से मुख्यमंत्री और 12 साल से प्रधानमंत्री के रूप में शासन चलाने का अनुभव रहा हो..
उसे शासन चलाने का ज्ञान देने से बड़ी बेवकूफी दुनिया में और कोई दूसरी नहीं हो सकती है.
क्योंकि, हमसे बेहतर वे जानते हैं कि मशीन को ठीक से चलाने के लिए कौन सा स्क्रू कहाँ और कब टाइट करना है।
इसलिए इस बात पर बहस करके या रोकर अपना समय और ऊर्जा जाया न करें कि युद्ध कब होगा, कैसे होगा, होगा या नहीं होगा; बल्कि यह विश्वास और धैर्य रखें कि जिन पर युद्ध करने या न करने का जिम्मा है।