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आपकी सोच से भी ज्यादा घातक है ढोंग्रेस 

भारत को कांग्रेस-मुक्त बनाने की आवश्यकता क्यों है ?

कांग्रेस भारत के लिए सदैव हानिकारक और खतरनाक रही है, यह बात कांग्रेस के जन्म से ही तय है।

आज़ादी से पहले एलन ह्यूम से लेकर मोतीलाल नेहरू तक और ततपश्चात तथाकथित आज़ादी के बाद गांधी-नेहरू से लेकर इंदिरा-राजीव-मनमोहन-सोनिया-राहुल सभी ने भारत के हितों को ठेस पहुंचाई है जबकि दिखाने के लिए उन्होंने अपनी पीठ थपथपाई है चाहे घटना या कारनामा कोई भी हो।

1885 में कांग्रेस के जन्म से लेकर पहले राजाओं महाराजाओं और धनपतियों व रईसों को लंदन की सैर कराने, सुरा-सुंदरी के जाल में फंसाने, टैलेंटेड भारतीयों को वजीफा देकर बैरिस्टर बनाने के नाम पर उन पर अंग्रेजियत और पाश्चात्य संस्कृति का कलेवर चढ़ाने, शरीर से भारतीय और दिल दिमाग से अंग्रेज बनाकर उनके द्वारा भारत पर हुकूमत चलाने, भारत की धन संपदा और बौद्धिक संपदा को लूटकर पाश्चात्य सभ्यता को समृद्ध कर भारत को गरीबी में धकेलने से लेकर विश्व युद्ध में भारतियों को अंग्रेजी सेना की ओर से लड़ाने, भारत को टुकड़ों में बिखराने, हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर देश का बंटवारा कराकर उन्हें मुसलमानों के हाथों में देकर हिंदुओं की शक्ति को क्षीण बनाने, भारतीय ज्ञान और वेद विज्ञान की खोजों को अपने नाम से आविष्कृत बनाकर दुनिया को दिखाने, भारत के गौरवशाली इतिहास को तोड़मरोड़कर नष्ट करने व गलत इतिहास पढ़ाने, गुरुकुल पद्धति हटाकर मैकाले शिक्षा पद्धति को थोपकर भारतीयों को सेक्युलर गुलाम व नकारात्मक हीनता से ग्रस्त करने तथा धर्मांतरण व अन्य धार्मिक पाबंदियों के माध्यम से सनातन व हिंदुत्व की परंपराओं व वैभव को नष्ट करने तक के सारे कुकर्म कांग्रेस की ही देन है। कहाँ तक गिनाएं, 2014 मध्य से पहले की सभी सरकारों (अटल जी के 6 वर्षों के शासन काल के अपवाद को छोड़कर) के कारनामें भारत के हितों को तार तार करनेवाले और देश को डुबोनेवाल ही रहे हैं, इसके हजारों उदाहरण मिल जाएंगे।

आज हम बात करते हैं ऐसे ही एक ढोंग्रेसी कारनामे की जिसे भारतीयों के समक्ष कांग्रेस शासन की जीत के रूप में परोसा गया जबकि हकीकत में वह भारत की हार और समस्याओं का अंबार थी। मैं बात कर रहा हूँ – 1971 में पूर्वी पाकिस्तान के बंगलादेश बनने और भारत की भूमिका के अवसर को आपदा बनाने की साजिश की…

जो लोग 1971 की लड़ाई में इंदिरा गांधी की पीठ थपथपाते हैं उन्हें बेनजीर भुट्टो के पति आसिफ अली जरदारी का पाकिस्तान के संसद में दिया गया यह बयान जरूर पढ़ना चाहिए।
जब पाकिस्तान के 90000 से ज्यादा सैनिक भारत की कैद में थे उनके तीन हजार से ज्यादा सैनिक अधिकारी हमारी हिरासत में थे… पाकिस्तान की सेना आत्मसमर्पण कर चुकी थी।

भारतीय सेना सिंध के जिले थारपारकर को भारत में मिला शामिल कर चुकी थी और उसे गुजरात का एक नया जिला घोषित कर दिया गया था और मुजफ्फराबाद पार्लियामेंट पर तिरंगा झंडा फहरा दिया गया था।

जुल्फिकार अली भुट्टो जब इंदिरा गांधी से शिमला समझौता करने आया तब वह अपनी बेटी बेनजीर भुट्टो को भी साथ में लाया था।

जुल्फिकार अली भुट्टो अपनी बेटी को राजनीति सिखा रहा था।
इंदिरा गांधी ने जुल्फिकार अली भुट्टो के सामने शर्त रखी यदि आपको अपने 93000 सैनिक वापस चाहिए तब आप कश्मीर हमें दे दीजिए, जुल्फिकार अली भुट्टो ने इंदिरा गांधी से कहा कि हम आपको कश्मीर नहीं देंगे, मैं कोई दस्तखत नहीं करूंगा, आप यह 93000 सैनिकों को अपने पास ही रखो।

इंदिरा गांधी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जुल्फिकार अली भुट्टो उनसे भी बड़ा खिलाड़ी है। वह जानता है कि सीमाओं पर हारी हुई युद्ध को टेबल पर कैसे जीता जाता है।

इंदिरा गांधी की हालत ऐसी हो गई थी जैसे कोई नमाज़ पढ़ने जाए और उसके गले रोजे पड़ जाएं।
पुपुल जयकर और कुलदीप नैयर दोनों ने अपनी किताब में लिखा है, इंदिरा गांधी उस मौके पर चूक गई, उनके और उनके सलाहकारों के पास कोई ऐसा कूटनीतिक ज्ञान नहीं था कि ऐसी स्थिति को कैसे संभाला जाए।

जिनेवा समझौते के तहत यदि कोई देश किसी युद्ध बंदी को पकड़ता है तब उसे युद्ध बंदी की डिग्निटी का पूरा ख्याल रखना होता है।

जुल्फिकार अली भुट्टो ने शाम को होटल में अपनी बेटी बेनजीर भुट्टो से कहा इस युद्ध में भारत की कमर टूट चुकी है, हमने युद्ध पूरी बहादुरी से लड़ा हमने भारत की अर्थव्यवस्था को बहुत करारी चोट दिया है। भारत पहले ही बांग्लादेशी शरणार्थियों का बोझ झेल चुका है अब भारत 93000 पाकिस्तानी सैनिकों को कैसे पालेगा और अगर भारत 93000 पाकिस्तानी सैनिकों को अपने पास बसाना चाहता है तो बसाए और उन कायर सैनिकों को हम वापस लेकर भी क्या करेंगे? मैंने इंदिरा गांधी की हालत सांप के गले में पड़ी छछूंदर जैसी कर दी है।
और अंत में इंदिरा गांधी की हालत ऐसी हो गई जैसे कोई सौ जूते भी खाए और सौ प्याज भी खाए।

इंदिरा गांधी ने कश्मीर भी पाकिस्तान को दे दिया 93000 सैनिक भी वापस कर दिए और अपने 56 सैनिकों को पाकिस्तान की जेल में मरने को छोड़ दिया, और 8 महीने के बाद नोबेल पुरस्कार की इच्छा में भारत के गुजरात राज्य में शामिल जिला थारपारकर को भी पाकिस्तान को वापस कर दिया जबकि थारपारकर की उस वक्त 98% आबादी हिंदू थी।

शिमला समझौते के बाद उस वक्त के सेना प्रमुख ने रिटायरमेंट के बाद जो किताब लिखी थी उसमें कहा था इस युद्ध को हमने लड़ाई के मैदान में तो जीत लिया लेकिन टेबल पर राजनेताओं ने भारत को हरा दिया और वो राजनेता इंदिरा गांधी थी।

आज बंगलादेश में हिंदुओं के साथ हो रहे नरसंहार और अत्याचार की जड़ में 1971 की तत्कालीन भारत सरकार की कूटनीतिक हार भी काफी हद तक जिम्मेदार है। आज भारत में बंगलादेशी शरणार्थियों व रोहिंग्या घुसपैठियों की समस्या की जड़ में भी वही कांग्रेसी नीति की हार व राजनैतिक षड्यंत्र ही जिम्मेदार है।

कांग्रेस का इतिहास बताता है कि इन्होंने भारत को बर्बाद ही किया!

फिर भी जो भारतीय विशेषकर हिन्दू और सनातनी (जैन, सिख, बौद्ध) कांग्रेस को वोट देते और समर्थन करते हैं, उन्हें कांग्रेस के कारनामों की फेहरिस्त पढ़कर उनके मकड़जाल और लोभ-लालच-स्वार्थ की राजनीति से बाहर निकलकर भारत के हित चिंतन में अपना और अपनी आनेवाली पीढ़ियों के भविष्य बर्बाद होने से बचाना चाहिए।

हमारे लिए भारत सर्वोपरि और राष्ट्र प्रथम है।

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