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गोवर्धन पूजा क्या, क्यों, कैसे, कब और वर्तमान में प्रासंगिकता

*बलि प्रतिपदा : गोवर्धन पूजा*

(दीपोत्सव का चतुर्थ दिवस)

गोवर्धन पूजा कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को की जाती है। इसमें भगवान कृष्ण गाय और बैलों का पूजन करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के निर्मित दीपक जलाकर अन्नकूट का प्रसाद अर्पित करते हैं। शाम को राजा बली और भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है।

गोवर्धन पूजा के दिन भगवान गोवर्धन और श्री कृष्ण की पूजा करने से जीवन में आने वाले कष्ट दूर हो जाते हैं। घर में मां लक्ष्मी का वास स्थापित होता है। गोवर्धन भगवान का आशीर्वाद मिलता है। घर की उन्नति होती है, सुख-समृद्धि आती है। घर में सकारात्मकता का संचार होने लगता है। आर्थिक स्थिति मजबूत होती है, तंगी और कर्ज जैसी समस्याएं दूर हो जाती हैं, सौभाग्य में वृद्धि होती है, घर धन-धान्य से भरा रहता है।

यह पर्व हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को दीपावली पूजन के अगले दिन मनाया जाता है।

इस पर्व को मनाने का कारण यह है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने वृंदावन के लोगों को वर्षा देवता इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए एक दिव्य कार्य किया था. उन्होंने गोवर्धन नामक पर्वत को एक उंगली तर्जनी पर उठाकर उसको छत्र बना दिया था और पूरे नगर के लोगों – गोप-गोपियों – और जीवों – गाय बछड़ों – को उसके नीचे शरण देकर सभी की वर्षा के प्रकोप और उसके कारण आयी बाढ़ से रक्षा की। ऐसी मूसलाधार वर्षा देवताओं के राजा इंद्रदेव ने अपना पराक्रम दिखाने और लोगों से अपनी पूजा करवाने की परंपरा के हेतु की थी। भगवान कृष्ण ने उसके इस अभिमान को चूर चूर करते हुए गोवर्धन पर्वत उठाकर सबकी रक्षा की और इंद्र को अभिमान तजकर क्षमा याचना पर विवश कर दिया था। इसलिए हम पृथ्वीवासी भगवान की इस कृपा और गोवर्धन पर्वत के इस योगदान के उपलक्ष्य में यह पूजा करते हैं।

इस बार गोवर्धन शनिवार, 02 नवंबर को मनाया जाएगा, क्योंकि कार्तिक अमावस्या 01 नवंबर तक रहने वाली है. अतएव गोवर्धन पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि पर मनाया जा रहा है. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत की पूजा-अर्चना और 56 भोग अर्पित करने से साधक को समस्त दुख और संताप से उसी तरह छुटकारा मिलता है जैसे भगवान ने वर्षा के प्रकोप से गाय ग्वालों की रक्षा की थी।
सबसे बड़ी बात – भगवान ने गोवर्धन पर्वत भले ही अकेले अपनी छोटी उंगली पर उठाकर इंद्र को सन्देश दिया कि उसका अभिमान तोड़ना भगवान के लिए एक उंगली भर का काम है, साथ ही उसे उठाने पर सभी ग्वालों गोपियों के अपनी अपनी लाठी, हाथ लगवाकर एकता की शक्ति का अहसास करवाया और समस्त ब्रजवासियों को एक विचार, एकजुट प्रयास और मिलजुलकर रहने का महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाया।

*वास्तविक पूजा*

मुख्यतः ये प्रकृति की पूजा है जिसकी शुरुआत भगवान कृष्ण ने की थी. इस दिन प्रकृति के आधार के रूप में गोवर्धन पर्वत का पूजन होता है और समाज के आधार के रूप में गाय की पूजा की जाती है. ये पूजा ब्रज से आरंभ हुई थी और धीरे-धीरे भारत में प्रचलित हो गई.

इस दिन भगवान कृष्ण और गोवर्धन पर्वत की पूजा उन्हें भोग लगाकर की जाती है। भोग थाली के बिना यह पूजा अधूरी मानी जाती है। यह भोग व्यंजन विभिन्न अनाजों को कूटकर बनाया जाता हैं इसलिए इसे अन्नकूट पूजन भी कहते है। हिन्दू धर्म में यह महत्वपूर्ण त्यौहार है जिसे सभी लोग मिलकर भोग बनाते हैं और भगवान को अर्पित कर बिना किसी भेदभाव के एक साथ समरसता से भोजन ग्रहण करते हैं।
यह भोग भोजन समाज के सभी वर्गों और जातियों के भेदभाव मिटाने वाला और सभी को अभिमान त्यागकर भगवान की शरण में आने की प्रेरणा देता है। आइए हम सब मिलकर इस त्यौहार को हर्षोल्लास और नृत्य आनंद के साथ मनाएं।


मध्यप्रदेश की राज्य सरकार ने तो इस बार गोवर्धन पूजा को राजकीय उत्सव के रूप में सभी जिलों, तहसील और नगर ग्रामों में आधिकारिक स्तर पर मनाने की घोषणा और तैयारी की है। यह सुखद है कि अब हमारी सरकारें और लोकतंत्र भी सनातन पर्वों और परंपराओं को पुनर्स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़कर सहयोग देकर समाज को जोड़ने और परस्पर प्रेम प्रीति समरसता से जीने की प्रेरणा और सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वहन कर रही है।

गोवर्धन पूजा से कौन नाराज होते है?

जब भगवान ने बृजवासियों की रक्षा करते हुए अपनी तर्जनी से गोवर्धन पर्वत को उठाकर भयंकर वर्षा से छुटकारा दिलाया था तब इन्द्र को यह अहंकार था कि वह देवराज इन्द्र है। ऐसे में उनकी पूजा न करके श्रीकृष्ण के कहने पर बृजवासियों ने प्रकृति की पूजा की, इससे रूष्ट होकर इंद्र ने भयंकर वर्षा ब्रजवासियों को दंडित करने हेतु की थी किंतु भगवान ने गोवर्धन पर्वत के माध्यम से उनकी रक्षा की और इंद्र के प्रकोप से न केवल बचाया बल्कि इंद्र को क्षमा मांगने पर विवश कर दिया । और शिक्षा देते हुए कहा कि बल, बुद्धि, धन, ऐश्वर्य और पद मिलने से मानव तो क्या देवता भी अहंकारी बन जाते हैं। अतः मनुष्यों और देवताओं को कभी अभिमान नहीं करना चाहिए।

आज जो लोग गोवर्धन पूजा से नाराज हैं, वे भी अभिमानी इंद्र के ही अनुयायी होंगे और अपनी अभिमानी प्रवृति को अनर्गल प्रलाप से उजागर कर रहे हैं। हमें उनकी बजाय भगवान श्री कृष्ण का ध्यान और धन्यवाद करते हुए गोवर्धन की पूजा अर्चना करनी है और सभी सनातनियों को एकता के महत्व को न केवल बताना है अपितु सबको एकजुट करके दिखाना है जैसे भगवान ने सभी ग्वाल गोपियों के साथ मिलकर गोवर्धन पर्वत उठाने का उपक्रम किया था। हमें भी एकजुट होकर अहंकारी जिहादियों, देशद्रोहियों और विधर्मी आचरण करने वालों को एकता की शक्ति से परास्त करना है और उनके अभिमान को तोड़ना है।

*गोवर्धन पूजा शुभ मुहूर्त* (Govardhan Puja 2024 Shubh Muhurat)

गोवर्धन पूजा की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 1 नवबंर की शाम को 5 बजकर 49 मिनट पर शुरू होगी और तिथि का समापन 2 नवंबर की रात 8 बजकर 01 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार, इस बार गोवर्धन और अन्नकूट का त्योहार 2 नवंबर को ही मनाया जाएगा.

इस बार 2 नवम्बर को गोवर्धन पूजा के निम्नलिखित मुहूर्त हैं

प्रातःकाल मुहूर्त – सुबह 06 बजकर 34 मिनट से 08 बजकर 46 मिनट तक।

विजय मुहूर्त- दोपहर 02 बजकर 09 मिनट से लेकर 02 बजकर 56 मिनट तक।

संध्याकाल मुहूर्त – दोपहर 03 बजकर 23 मिनट से 05 बजकर 35 मिनट तक।
गोधूलि मुहूर्त- शाम 06 बजकर 05 मिनट से लेकर 06 बजकर 30 मिनिट तक।
त्रिपुष्कर योग– रात्रि 08 बजकर 21 मिनट तक 3 नवंबर को सुबह 05 बजकर 58 मिनट तक।

*गोवर्धन पूजा विधि*

– सबसे पहले घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन का चित्र बनाएं।

– इसके बाद रोली, चावल, खीर, बताशे, जल, दूध, पान, केसर, फूल और दीपक जलाकर गोवर्धन भगवान की पूजा करें।

– कहा जाता है कि इस दिन विधि विधान सेसच्चेदिल से गोवर्धन भगवान की पूजा करने से सालभर भगवान श्री कृष्ण की कृपा बनी रहती है।

– भगवान श्री कृष्ण का अधिक से अधिक ध्यान करें।

– इस दिन भगवान को 56 या 108 प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाने की परंपरा भी है।

– भगवान श्री कृष्ण की आरती करें।

गोवर्धन महाराज की स्तुति कीजिये

पूजा सामग्री : गोवर्धन पूजा में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत और ग्वाल बाल बनाए जाते हैं जिसके पास भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति रखकर धूप दीप से उनकी आरती कर उन्हें ताजे फूल अर्पित किए जाते हैं, जिसके बाद भगवान श्रीकृष्ण को छप्पन अलग अलग तरह के भोग लगाएं जाते हैं और साथ ही साथ दूध, घी, शक्कर, दही और शहद से बना पंचामृत चढ़ाया जाता है।

*पूजा के मंत्र*
1. ॐ कृष्णाय नमः
2. हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
3. ॐ श्री कृष्णः शरणं ममः
4. ॐ देव्किनन्दनाय विधमहे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्ण:प्रचोदयात
5. ॐ नमो भगवते तस्मै कृष्णाया कुण्ठमेधसे।
सर्वव्याधि विनाशाय प्रभो माममृतं कृधि।।
6.कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
प्रनत क्लेश नाशाय, गोविन्दाय नमोनमः।।
7. गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक। विष्णुबाहु कृतोच्छाराय गवां कोटिप्रभो भव।।
8. सच्चिदानंदरूपाय विश्वोतपत्यादिहेतवे। तापत्रयविनाशाय, श्री कृष्णाय वयं नमः।।
9. भव मोतिहर मन दीनबन्धो, जयति जय सर्वेश्वरम

7वें क्रमांक पर दिया गोवर्धन पूजा मंत्र एक ही है जिसे 21 बार या 108 बार बोलते हुए गोवर्धन की परिक्रमा करनी चाहिए।

गोवर्धन पूजा से जुड़ी अन्य रोचक बातें

*बलि प्रतिपदा पर गोवर्धन पूजा कब करें*
(2 नवम्बर 24 को ही मनाएं)
चाहे दीपावली आपने 31 ऑक्टोबर को मनाई हो या चाहे 1 नवम्बर को, प्रतिपदा 2 नवबंर को ही मनाई जाएगी।

कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन नामक पर्व है। इस दिन प्रात:काल गोपेश भगवान श्रीकृष्ण का पूजन होता है।
प्रतिपदा तिथि के दिन गायों और बैलों को वस्त्राभूषण तथा मालाओं से सजाया जाता है।
गोवर्धन की पूजा करते समय अग्रलिखित मन्त्र का उच्चारण करें –
_*गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक।*_
_*विष्णु वाहकृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रदो भव।।*_
_अर्थात् पृथ्वी को धारण करने वाले गोवर्धन! आप गोकुल के रक्षक हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने आपको अपनी भुजाओं पर उठाया था। आप मुझे करोड़ों गौऍं प्रदान करें।_
घरों में गोमय (गोबर) का गोवर्धन (पर्वत) बनाकर पूजा की जाती है और 56 प्रकार के भोग लगाकर प्रभु को समर्पित किया जाता है।
गोवर्धन पर्वत बनाते समय ध्यान रखें कि गोवर्धन का मुंह पश्चिम दिशा में हो।
मथुरा, वृन्दावन, गोकुल, बरसाना, नाथद्वारा, काशी आदि भारत के प्रमुख मन्दिरों में लड्डू तथा व्यञ्जनों के पहाड़ (कूट) बनाए जाते हैं, जिसे हम अन्नकूट कहते हैं।
गोवर्धन पर्वत द्रोणाचल (द्रोण) पर्वत का पुत्र है। यह शाल्मली द्वीप में था।
वहॉं से पुलस्त्य ऋषि गोवर्धन पर्वत को लेकर आए थे।
पुलस्त्य ऋषि के शाप से गोवर्धन पर्वत आज भी प्रतिदिन तिल – तिल घटता है।
गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने का विशेष महत्त्व है। 22 कि.मी. की परिक्रमा है।
परिक्रमा पूर्ण होने पर मानसी गङ्गा में स्नान तथा दानघाटी स्थित गोवर्धननाथ मन्दिर में ठाकुरजी का दूध से अभिषेक करने का विशेष महत्त्व है।

जय श्री कृष्ण
जय गोवर्धन
जय गौमाता

संकलन सौजन्य : होपधारा लाइब्रेरी की तरफ से

डॉ मधुप्रिया शर्मा

सभी को गोवर्धन पूजा के मंगलमय पर्व की ढेरों शुभकामनाएं। भगवान श्री कृष्ण की कृपा सब पर बनी रहे।

एक प्रार्थना : श्री कृष्ण को आराधना पूजा उनके पूर्ण अवतार भगवान के रूप में करें। माखनचोर, लड्डू गोपाल, कान्हा बंशी वाला, रास रचैया, इत्यादि लीलाओं की अपेक्षा उनके शक्तिमान और ऊर्जावान सर्वज्ञ स्वरूप का ध्यान, पूजन अर्चन करें क्योंकि आज हमारे सनातन समाज को उनके बलशाली, पराक्रमी, कर्मयोगी और धर्मरक्षक रूप की अत्यंत महती आवश्यकता है, न कि नटखट लाड़ दुलारे रास रचाने वाले श्रृंगार रसिक छैला की जिसे आप कभी लड्डू गोपाल बनाकर LKG में एडमिशन दिला देते हो तो कभी नतर्क बनाकर ता ता थैया करा देते हो… वर्तमान में हमें अहंकारियों के मद को चूर्ण करने वाले गोवर्धनधारी की आवश्यकता है जो देश को गद्दारों से मुक्ति दिला सके। आज हमें उस मधुसूदन की आवश्यकता है जिसने धर्म की रक्षा हेतु महाभारत में गीता का उपदेश देकर मोहग्रसित अर्जुन को वीरता, निडरता, और कर्मठता से कर्तव्य पालन की शिक्षा दी । हमें उन्हीं शिक्षाओं पर आचरण करते हुए सनातन धर्म को पुनर्स्थापित और गौरवशाली बनाना है।
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