चूहे द्वारा हाथी पर प्रहार है ट्रम्प का टैरिफ

“टैरिफ युद्ध और वैश्विक शक्ति-संतुलन: भारत-अमेरिका संबंधों का विश्लेषण”
प्रस्तावना
विश्व राजनीति और वैश्विक अर्थव्यवस्था में अमेरिका दशकों से सबसे बड़ी शक्ति रहा है। किंतु इक्कीसवीं सदी में चीन और भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं ने इस प्रभुत्व को चुनौती दी है। हाल ही में अमेरिकी अर्थशास्त्री रिचर्ड वोल्फ ने ट्रम्प प्रशासन की भारत पर लगाई गई टैरिफ नीति की आलोचना करते हुए कहा कि यह “चूहे द्वारा हाथी पर प्रहार करने जैसा है” और इसे “मज़ेदार, डरावना नहीं” बताया। यह बयान केवल एक व्यंग्यात्मक टिप्पणी नहीं, बल्कि आज की वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था की बदलती वास्तविकताओं को उजागर करता है।
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1. ट्रम्प की टैरिफ नीति और भारत
ट्रम्प प्रशासन की आर्थिक नीतियाँ “अमेरिका फर्स्ट” सिद्धांत पर आधारित थीं।
अमेरिका ने भारत सहित कई देशों पर 50% तक आयात शुल्क (टैरिफ) बढ़ाए।
उद्देश्य था अमेरिकी घरेलू उद्योगों की रक्षा करना और भारत जैसे देशों को नियंत्रित करना।
किंतु भारत ने तुरंत प्रतिकार करते हुए अमेरिका से आयातित उत्पादों पर शुल्क लगाया और नए बाजारों की ओर रुख़ किया।
यह दिखाता है कि आज भारत जैसे देश एकतरफ़ा दबाव में नहीं झुकते।
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2. वोल्फ का दृष्टिकोण
रिचर्ड वोल्फ ने अमेरिका की इस नीति को निरर्थक और आत्मघाती बताया।
उन्होंने कहा कि भारत आज एक “हाथी” है—मज़बूत, स्थिर और वैश्विक मंच पर सक्रिय।
अमेरिका का दबाव डालना “चूहे के प्रहार” जैसा है—छोटा और हास्यास्पद।
उनकी दृष्टि में यह नीति अमेरिका के लिए आत्मघात है, क्योंकि इससे भारत और अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाएँ अमेरिका से दूरी बना लेंगी।
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3. BRICS बनाम G7: वैश्विक शक्ति का नया संतुलन
वोल्फ ने BRICS और G7 की तुलना करते हुए स्पष्ट किया कि—
BRICS का उत्पादन विश्व का लगभग 35% है,
जबकि G7 का उत्पादन केवल 28% है।
भारत BRICS का एक प्रमुख स्तंभ है। इस कारण, अमेरिका की संरक्षणवादी नीति अप्रत्यक्ष रूप से BRICS जैसे मंच को और मज़बूत करती है।
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4. अमेरिका की आंतरिक आर्थिक स्थिति
वोल्फ ने अमेरिका के संकटों पर भी प्रकाश डाला:
अमेरिका का राष्ट्रीय ऋण 36 ट्रिलियन डॉलर पार कर चुका है।
विदेशी देश अमेरिकी बॉन्ड्स खरीदने में हिचक रहे हैं।
घरेलू राजनीति ध्रुवीकरण और आर्थिक असमानता से जूझ रही है।
ऐसे में भारत जैसे बड़े बाजार को खोना अमेरिका के लिए गंभीर नुकसान है।
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5. भारत की ताक़त: हाथी की चाल
भारत को ‘हाथी’ कहना केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि तथ्यात्मक भी है:
आर्थिक दृष्टि से: भारत विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और तेजी से तीसरे स्थान की ओर बढ़ रहा है।
राजनीतिक दृष्टि से: भारत पश्चिमी देशों, रूस, चीन और एशिया-प्रशांत देशों के साथ संतुलन बनाए रखता है।
भूराजनीतिक दृष्टि से: भारत BRICS, SCO, QUAD और G20 में प्रमुख भूमिका निभा रहा है।
भारत अब किसी भी एक महाशक्ति के दबाव में नहीं आता।
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6. अमेरिका के लिए संभावित परिणाम
यदि अमेरिका अपनी टैरिफ नीति पर अड़ा रहा तो उसके लिए नतीजे नकारात्मक हो सकते हैं:
1. वैश्विक नेतृत्व में कमी – भारत और अन्य देशों के साथ टकराव से अमेरिका की साख घटेगी।
2. BRICS की मजबूती – अमेरिका जितना दबाव डालेगा, BRICS उतना ही संगठित होगा।
3. आर्थिक हानि – अमेरिकी उपभोक्ताओं को महंगे आयात का सामना करना पड़ेगा।
4. रणनीतिक नुकसान – भारत जैसा संभावित साझेदार अमेरिका से दूर हो सकता है।
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7. भारत के लिए अवसर
भारत के लिए यह परिस्थिति कई अवसर खोलती है:
नए व्यापारिक साझेदार: रूस, चीन, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका के साथ संबंध गहरे करना।
आत्मनिर्भरता: ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी योजनाओं को गति मिलना।
वैश्विक प्रतिष्ठा: भारत की छवि एक स्वतंत्र और संतुलित राष्ट्र के रूप में और मज़बूत होना।
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8. क्या वोल्फ पूरी तरह सही हैं?
यहाँ आलोचनात्मक दृष्टि आवश्यक है।
अमेरिका को “सिर्फ चूहा” कहना अतिशयोक्ति है।
अमेरिका आज भी टेक्नोलॉजी, रक्षा और वित्तीय शक्ति में सबसे आगे है।
अमेरिकी डॉलर आज भी वैश्विक मुद्रा है।
भारत कई क्षेत्रों (जैसे रक्षा उपकरण, तकनीकी आयात) में अमेरिका पर निर्भर है।
इसलिए वोल्फ की तुलना प्रतीकात्मक रूप से सही है, लेकिन वास्तविकता यह है कि अमेरिका अभी भी एक महाशक्ति है।
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9. विश्लेषणात्मक निष्कर्ष
वोल्फ का बयान भारत की उभरती ताक़त और अमेरिका की रणनीतिक भूलों को उजागर करता है।
यह सच है कि केवल टैरिफ या धमकी से भारत को दबाया नहीं जा सकता।
परंतु अमेरिका को पूरी तरह “कमज़ोर” मानना सही नहीं होगा।
सही निष्कर्ष यह है कि आज की दुनिया बहुध्रुवीय (Multipolar) हो चुकी है, और भारत जैसे देशों के पास अब विकल्प और शक्ति दोनों हैं।
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समापन
रिचर्ड वोल्फ का “चूहे का हाथी पर प्रहार” वाला बयान एक गहरी सच्चाई की ओर संकेत करता है। भारत अब वैश्विक राजनीति में केवल एक उभरती शक्ति नहीं, बल्कि एक स्थिर और आत्मनिर्भर खिलाड़ी है। अमेरिका की टैरिफ नीति उसे डराने में विफल रही है।
हालाँकि अमेरिका अभी भी वैश्विक परिदृश्य में एक प्रमुख शक्ति है, किंतु बदलते समीकरणों में उसे यह समझना होगा कि सहयोग और साझेदारी ही भविष्य की कुंजी है। आज की दुनिया में धमकी और दबाव की नीति मज़ाक़ बन सकती है, डर पैदा नहीं कर सकती।