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24 दिसम्बर से 31 दिसम्बर शहीदी सप्ताह का इतिहास

आज वीर बाल दिवस

22 दिसंबर से पूरा हफ्ता शहीदी दिवस के रूप में मनाते हैं सिख समाज के लोग, जानिये दसवें गुरु गोविंद सिंह से जुड़ी पूरी कहानी

देश में पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐलान के बाद ही 26 दिसंबर को गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी के साहस को श्रद्धांजलि देने के लिए वीर बाल दिवस पूरे देश-विदेश में मनाया जाता है।

* गुरु गोबिंद सिंह जी के परिवार की शहादत को भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी शहादत माना जाता है
* 22 दिसंबर को चमकौर की लड़ाई में गुरु गोबिंद सिंह जी ने मुगलों से लिया था लोहा, सिखों में भरा था जोश
* सिख समाज के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी का शहीदी दिवस इसी महीने में मनाया जाता है.
* 24 दिसंबर सिख समाज के लोग इसे शहीदी दिवस के रूप में मनाते हैं.
* सिख समाज में इस दिन का विशेष महत्व होता है.
* 27 दिसंबर को वजीर खान के आदेश पर बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी को जिंदा चुनाव दिया गया
* गुरु गोविंद सिंह ने अपने बच्चों की कुर्बानी इसी हफ्ते अपने देश और धर्म के लिए दे दी थी.

*सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी के परिवार की शहादत को आज भी इतिहास की सबसे बड़ी शहादत माना जाता है। छोटे साहिबजादों का स्मरण आते ही सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है और सिर श्रद्धा से झुक जाता है।*

मुगलों ने अचानक आनंदपुर साहिब के किले पर हमला कर दिया। गुरु गोबिंद सिंह जी मुगलों से लड़ना चाहते थे, लेकिन अन्य सिखों ने उन्हें वहां से चलने के लिए कहा। इसके बाद गुरु गोबिंद सिंह के परिवार सहित अन्य सिखों ने आनंदपुर साहिब के किले को छोड़ दिया और वहां से निकल पड़े। जब सभी लोग सरसा नदी को पार कर रहे थे तो पानी का बहाव इतना तेज हो गया कि पूरा परिवार बिछड़ गया।

बिछड़ने के बाद गुरु गोबिंद सिंह व दो बड़े साहिबजादे बाबा अजीत सिंह व बाबा जुझार सिंह चमकौर पहुंच गए। वहीं, माता गुजरी, दोनों छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह व बाबा फतेह सिंह और गुरु साहिब के सेवक रहे गंगू गुरु साहिब व अन्य सिखों से अलग हो गए। इसके बाद गंगू इन सभी को अपने घर ले गया लेकिन उसने सरहिंद के नवाज वजीर खान को जानकारी दे दी जिसके बाद वजीर खान माता गुजरी और दोनों छोटे साहिबजादों को कैद कर लिया।

22 दिसंबर को चमकौर की लड़ाई शुरू हुई जिसमें सिख और मुगलों की सेना आमने-सामने थी। मुगल बड़ी संख्या में थे लेकिन सिख कुछ ही थे। गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों में हौसला भरा और युद्ध में डटकर सामना करने को कहा। यह युद्ध अगले दिन भी चलता रहा। युद्ध में सिखों को शहीद होता देखा दोनों बड़े साहिबजादों बाबा अजीत सिंह व बाबा जुझार सिंह ने एक-एक कर युद्ध में जाने की अनुमति गुरु साहिब से मांगी। गुरु साहिब ने उन्हें अनुमति दी और उन्होंने एक के बाद एक मुगल को मौत के घाट उतारना शुरू किया। इसके बाद वह दोनों भी शहीद हो गए।

24 दिसंबर
गुरु गोबिंद सिंह जी भी इस युद्ध में उतरना चाहते थे लेकिन अन्य सिखों ने अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए गुरु साहिब जो युद्ध में उतरने से रोक दिया और उन्हें वहां से जाने को कहा। मजबूरन गुरु साहिब को वहां से निकलना पड़ा। इसके बाद वह सिख मैदान में लड़ते हुए शहीद हो गए। यहां से निकलने के बाद गुरु गोबिंद सिंह जी एक गांव में पहुंचे जहां उन्हें बीबी हरशरन कौर मिलीं जो गुरु साहिब को आदर्श मानती थीं।

उन्हें जब युद्ध में शहीद हुए सिखों व साहिबजादों की जानकारी मिली तो वह चुपके से चमकौर पहुंचीं और शहीदों का अंतिम संस्कार करना शुरू किया जबकि मुगल यह नहीं चाहते थे। वह चाहते थे कि चील-गिद्ध इन्हें खाएं। जैसे ही मुगल सैनिकों ने बीबी हरशरण कौर को देखा, उन्हें भी आग के हवाले कर दिया और वह भी शहीद हो गईं।

26 दिसंबर
सरहिंद के नवाज वजीर खान ने माता गुजरी और दोनों छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह व बाबा फतेह सिंह को ठंडा बुर्ज में खुले आसमान के नीचे कैद कर दिया। वजीर खान ने दोनों छोटे साहिबजादों को अपनी कचहरी में बुलाया और डरा-धमकाकर उन्हें धर्म परिवर्तन करने को कहा लेकिन दोनों साहिबजादों ने ‘जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’ के जयकारे लगाते हुए धर्म परिवर्तन करने से मना कर दिया। वजीर खान ने फिर धमकी देते हुए कहा कि कल तक या तो धर्म परिवर्तन करो या मरने के लिए तैयार रहो।

27 दिसंबर अगले दिन ठंडे बुर्ज में कैद माता गुजरी ने दोनों साहिबजादों को बेहद प्यार से तैयार करके दोबारा से वजीर खान की कचहरी में भेजा। यहां फिर वजीर खान ने उन्हें धर्म परिवर्तन करने को कहा लेकिन छोटे साहिबजादों ने मना कर दिया और फिर से जयकारे लगाने लगे। यह सुन वजीर खान तिलमिला उठा और दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवार में चिनवाने का हुक्म दे दिया और साहिबजादों को शहीद कर दिया। यह खबर जैसे ही माता दादी माता गुजरी के पास पहुंची, उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए।

सभी भारतीयों को इस इतिहास को कभी भूलना नहीं चाहिए कि गुरु गोविंदसिंह जी के पूरे परिवार ने हिन्दू धर्म की रक्षार्थ प्राणों का बलिदान दिया था । जो लोग हिन्दू और सिख में भेद करके सनातन का अपमान करते हैं वे सनातन धर्म और भारत के शत्रु हैं जो हमें बांटकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते आये हैं। हिंदुओं और सिखों सभी सनातनियों को विधर्मियों (ईसाई और कसाई) की चालों को समझ लेना चाहिए। जो खालिस्तान के नाम पर सिखों को अलग करने का कुचक्र करते हैं वे विधर्मियों की गोद में बैठकर दूध मलाई खाकर जंगली बिलाव बन गए हैं। उनको बहिष्कृत कर सनातन और भारत की रक्षा करनी होगी।

इस बलिदान सप्ताह पर हम सब सनातनी इस बात का संकल्प लें कि हम सभी सनातनी (हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध) कभी नहीं बंटेंगे, कभी आपस में नहीं लड़ेंगे। बंटेंगे तो कटेंगे। जैसे हमारे गुरुभाइयों ने शीश कटवा दिए मगर सनातन धर्म नहीं छोड़ा, इसी तरह हम मर मिटेंगे मगर अपना सनातन धर्म और उसकी एकता अखंडता पर आंच नहीं आने देंगे।

आइए सभी महाकुम्भ में एकत्रित होकर इस संकल्प को दोहराएं।

महाकुंभ की जानकारी और व्यवस्था के लिए 8828541542 पर होपधारा एडमिन को सन्देश कर सकते हैं। 

 

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