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पूर्णिमा से बदल जाएगी जिन्दगी आपकी ?

क्या आप जानते हैं कि मास का सबसे महत्वपूर्ण दिवस कौनसा है और वह आपकी जिन्दगी में चमत्कारिक परिवर्तन ला सकता है?

पूर्णिमा को कैसे बनाएं खास दिवस

(प्रत्येक पूर्णमासी को पालनीय पूजन हवन विधि विधान सहित यह आलेख अंत तक पूरा पढ़िये ; मिलेगा आपको एक नव प्रकाश नई दृष्टि और सकारात्मक उर्जा )

पूर्णिमा का अर्थ है, जब चंद्रमा पूरी तरह से प्रकाशमान होता है. पूर्णिमा के दिन, चंद्रमा का पूरा हिस्सा पृथ्वी की ओर होता है और हम उसे देख पाते हैं. यह तब होता है, जब पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य के बीच में होती है. पूर्णिमा शब्द संस्कृत का है.
चंद्र-मास के शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि जिसमें चंद्रमा अपने पूरे आकार में उदित होता है; पूर्णमासी।

हिन्दुओं के चंद्रमास के अनुसार एक मास में 30 तिथियां होती हैं और इन 30 तिथियों को 2 पक्ष में विभाजित किया गया है- कृष्‍ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। एक पक्ष 15 दिन का होता है। कृष्‍ण पक्ष में अमावस्या आखिरी तिथि होती है और शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा आखिरी तिथि होती है। पूर्णिमा के बाद दूसरे माह का प्रारंभ हो जाता है। वर्ष के 12 माह के अनुसार 12 पूर्णिमा होती है। आओ जानते हैं सभी के नाम और महत्व को।

12 पूर्णिमा के नाम : वैसे तो सभी पूर्णिमा के नाम महीनों के नाम पर ही रखे गए हैं जैसे चैत्र माह की चैत्र पूर्णिमा और फाल्गुन माह की फल्गुन पूर्णिमा। परंतु कुछ पूर्णिमाओं को विशेष नामों से जाना जाता है। सभी पूर्णिमा का महत्व भी अलग अलग होता है।

1. चैत्र : इस दिन भगवान शिव के 11वें रुद्रावतार श्री हनुमान जी का जन्म हुआ था। वैसे मतांतर से कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भी हनुमान जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। कुछ लोग से प्रेम पूर्णिमा भी कहते हैं जबकि पतिव्रत मनाया जाता है।

2. वैशाख : इसे वैशाख पूर्णिमा के अलावा बुद्ध पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। वैशाख पूर्णिमा के दिन सूर्य अपनी उच्च राशि मेष में और चांद भी अपनी उच्च राशि तुला में रहता है। मान्यता है कि बैशाख पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करके दान पुण्य करने से कुंभ में स्नान के समान पुण्य प्राप्त होता है। इस पूर्णिमा को पीपल पूर्णिमा भी कहते हैं क्योंकि इस दिन पीपल की पूजा करने से ग्रह और पितृ दोष का निवारण हो जाता है। वैशाख माह की पूर्णिमा के दिन धर्मराज व्रत रखा जाता है।

3. ज्येष्ठ : ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा को देव स्नान पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन तीर्थ स्नान, दान और व्रत करने से समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है। साथ ही इस दिन विवाहित महिलाएं व्रत कर पति की लंबी आयु के लिए वट, यानि बरगद के पेड़ की उपासना करती है। इसलिए इसे वट पूर्णिमा भी कहते हैं। वट सावित्री का व्रत रखा जाता है। इसके आलावा इस दिन बिल्व पत्रों से उमा-महेश्वर की पूजा की जाती है।

4. आषाढ़ : आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन से लेकर अगले 4 माह तक अध्ययन, ध्यान और साधना के लिए सही समय रहता है। इस दिन महर्षि वेद व्यासजी की पूजा का खास महत्व होने के साथ ही गुरु शिष्य परंपरा के चलते गुरुओं और शिक्षकों का सम्मान किया जाता है।

5. श्रावण : श्रावणी पूर्णिमा के दिन रक्षा बंधन का त्योहार होता है। भारत के दक्षिण भारत में पश्चिमी घाट सहित सभी समुद्री क्षेत्रों में हिन्दू कैलेंडर अनुसार श्रावण पूर्णिमा को नारियल पूर्णिमा कहा जाता है। इस दिन दोनों क्षेत्रों में दान, पुण्य के साथ गोदान करने से जीवन में चल रही समस्त समस्याओं से छुटकारा मिलता है।

6. भाद्रपद : भाद्रपद महीने की पूर्णिमा को व्रत और स्नान-दान करने से समस्त कष्टों से छुटकारा मिलता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इसके साथ ही 16 दिनों का श्राद्ध पक्ष शुरू हो जाता है। साथ ही महिलाएं इस दिन उमा-महेश्वर का व्रत रखकर शिव और पार्वती की पूजा करती हैं। भाद्रमास की पूर्णिमा पर भगवान नारायण के साथ पितरों का भी पूजन किया जाता है। इस दिन भगवान विष्‍णु की पूजा के साथ ही पितरों का स्‍मरण करके उनके निमित्‍त दान करने से आपको पुण्‍य की प्राप्ति होती है और पितृगण आपसे प्रसन्‍न होकर आपको सुखी रहने का आशीर्वाद देते हैं।

7. आश्विन : अश्विनी पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा भी कहा जाता है जिसका खासा महत्व है। इस दिन चांद ‍नीला दिखाई देता है। इस दिन चांद की रोशनी में दूध या खीर रखकर खाने का महत्व है। इस दिन कोजागर व्रत के साथ लक्ष्मी कुबेर की पूजा भी की जाती है। इस दिन के बाद से ही कार्तिक मास के स्नान-दान व्रत नियम आदि प्रारम्भ होते हैं।

8. कार्तिक : इसे कार्तिक के अलावा त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन दीपदान और विष्णु पूजा का खास महत्व रहता है। इस दिन को देव दिवाली भी कहा जाता है। इस दिन पुष्कर में मेला लगता है और इस दिन श्री गुरु नानकदेवजी की जयंती भी मनाई जाती है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन किया गया दान-पुण्य अक्षय फलों की प्राप्ति कराता है। इसीलिए इस दिन अपनी बहन, भानजे, बुआ के बेटे, मामा को भी दान स्वरूप कुछ न कुछ दान देने से घर में धन-सम्पदा बनी रहती है। पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी का पीपल के वृक्ष पर निवास रहता है।

9. मार्गशीर्ष : मार्गशीर्ष की पूर्णिमा के दिन श्री दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष माह की इस पूर्णिमा को अगहन पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन गंगा आदि पवित्र तीर्थ स्थलों पर स्नान दान करने से समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

10. पौष : पौष की पूर्णिमा के दिन बनारस में दशाश्वमेध तथा प्रयाग में त्रिवेणी संगम पर स्नान करना बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस दिन शाकंभरी जयंती मनाई जाती है और जैन धर्म में पुष्यभिषेक यात्रा प्रारंभ होती है।

11. माघ : इस दिन दान-दक्षिणा का बत्तीस गुना फल मिलता है। इसलिए इसे माघी पूर्णिमा के अलावा बत्तिसी पूर्णिमा भी कहते हैं। माघ माह में अक्सर कुंभ मेले का आयोजन होता है। माघ की पूर्णिमा के दिन संत रविदास जयंती, श्री ललित और श्री भैरव जयंती मनाई जाती है। माघी पूर्णिमा के दिन संगम पर माघ-मेले में जाने और स्नान करने का विशेष महत्व है।

12. फाल्गुन : फाल्गुनी पूर्णिमा हिन्दू कैलेंडर का अंतिम दिन होती है। इसके अगले दिन से नववर्ष प्रारम्भ हो जाता है। फागुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

*पूर्णिमा का महत्व:*
पुराणों के अनुसार पूर्णिमा या पूर्ण चंद्र दिवस जन्म, पुनर्जन्म, सृजन और अभिव्यक्ति से जुड़ा हुआ है। इस शुभ दिन पर, चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर अपना एक चक्कर पूरा करता है जो किसी के जीवन में एक अध्याय के अंत और एक नए अध्याय की शुरुआत का प्रतीक है।

इसलिये, पूर्णिमा के दिन व्रत रखने की महिमा अपार है और इसके पालन से जीवन के सभी दुखों का नाश होता है। भगवान विष्णु की कृपा से भक्तों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है। पूर्णिमा व्रत की इस कथा को सुनने और पालन करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और भगवान की कृपा सदैव बनी रहती है।

हिंदू धर्म में पूर्णिमा को बहुत ही शुभ दिन माना जाता है। यह भगवान विष्णु के प्रति बहुत ही भक्ति और समर्पण का दिन है। इस दिन लोग व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु और लक्ष्मीजी की पूजा-अर्चना करते हैं।

*क्या होता है पूर्णिमा के दिन :*
चांद का धरती के जल से संबंध है। जब पूर्णिमा आती है तो समुद्र में ज्वार-भाटा उत्पन्न होता है, क्योंकि चंद्रमा समुद्र के जल को ऊपर की ओर खींचता है। मानव के शरीर में भी लगभग 85 प्रतिशत जल रहता है। पूर्णिमा के दिन इस जल की गति और गुण बदल जाते हैं।

*पूर्णिमा की विशेष बातें:*

पूर्णिमा को पौर्णमासी भी कहते हैं.

पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का पूर्ण प्रभाव होता है, जिससे उसके शुभ फल बढ़ते हैं.

ज्योतिषशास्त्र में चंद्रमा को मन का कारक ग्रह माना गया है.

प्राचीन संस्कृतियों ने महीनों और मौसमों को ट्रैक करने के लिए पूर्णिमा को अलग-अलग नाम दिए थे. जैसे, जून पूर्णिमा को हॉर्स मून कहा जाता है.

पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, चंद्रमा को उनके ससुर-पिता ने श्राप दिया था कि उनका सुंदर स्वरूप धीरे-धीरे क्षीण होकर नष्ट हो जाएगा.

चंद्रमा की चमकदार पूर्णता, प्रचुरता और उदार आशीर्वाद का प्रतिनिधित्व करती है । इसलिए, पूर्णिमा का दिन महत्वपूर्ण गतिविधियों को शुरू करने और पूरा करने के लिए एक बहुत ही शुभ समय माना जाता है।

*पूर्णमासी की प्रकृति*

पूर्णिमा की रात मन ज्यादा बेचैन रहता है और नींद कम ही आती है। कमजोर दिमाग वाले लोगों के मन में आत्महत्या या हत्या करने के विचार बढ़ जाते हैं। इस दिन किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन शराब आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए। इसके शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम हो सकते हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार इस दिन चन्द्रमा का प्रभाव काफी तेज होता है इन कारणों से शरीर के अंदर रक्‍त में न्यूरॉन सेल्स क्रियाशील हो जाते हैं और ऐसी स्थिति में इंसान ज्यादा उत्तेजित या भावुक रहता है। एक बार नहीं, प्रत्येक पूर्णिमा को ऐसा होता रहता है तो व्यक्ति का भविष्य भी उसी अनुसार बनता और बिगड़ता रहता है। जिन्हें मंदाग्नि रोग होता है या जिनके पेट में चय-उपचय की क्रिया शिथिल होती है, तब अक्सर सुनने में आता है कि ऐसे व्यक्‍ति भोजन करने के बाद नशा जैसा महसूस करते हैं और नशे में न्यूरॉन सेल्स शिथिल हो जाते हैं जिससे दिमाग का नियंत्रण शरीर पर कम, भावनाओं पर ज्यादा केंद्रित हो जाता है। ऐसे व्यक्‍तियों पर चन्द्रमा का प्रभाव गलत दिशा लेने लगता है।
ऐसा लगता है कि चंद्रमा के चरणों और द्विध्रुवी विकार के लक्षणों में परिवर्तन के बीच एक संबंध है। इस बात के भी कुछ प्रमाण हैं कि पूर्णिमा के कारण गहरी नींद कम आती है और REM नींद में प्रवेश करने में देरी होती है । इसके अलावा, कुछ अध्ययनों से पता चला है कि पूर्णिमा के दौरान हृदय संबंधी स्थितियों में थोड़ा बदलाव होता है।

इस कारण पूर्णिमा के दिन उपवास व्रत का पालन रखने की सलाह दी जाती है।

शास्त्रों के अनुसार, पूर्णिमा का दिन और रात दोनों आनंद सुखदायक होते हैं क्योंकि इस दिन माता लक्ष्मी जी सपरिवार भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने के लिए जगत के पालनहार श्री हरि, मन के नियंता भ्राता चंद्रमा और सभी देवियों – सावित्री, कात्यायनी, सरस्वती, उमा, त्रिपुरसुंदरी, ब्राह्मणी सहित तत्पर रहती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस दिन सद्गुरु भगवान भी आशीर्वाद देने हेतु उपस्थित रहते हैं। चूंकि पूर्णिमा के दिन लक्ष्मीजी का निवास पीपल के वृक्ष पर होता है इसलिए पूर्णिमा के दिन सुबह स्नान के बाद पीपल पर जल चढ़ाने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। स्नान के बाद चंद्रमा से संबंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए।

*पूजा विधि:*

हिंदू पंचांग के अनुसार हर महीने की शुक्ल पक्ष की 15वीं तिथि को पूर्णिमा तिथि पड़ती है। इस दिन चंद्र देव की पूजा विधि विधान से करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। पूर्णिमा तिथि के दिन पितर तर्पण करने से पितृ दोष से मुक्ति मिल सकती है। इस दिन चंद्र देव की पूजा के साथ- साथ शिव जी, विष्णु जी और लक्ष्मीजी की पूजा से अक्षय फल की प्राप्ति होगी।

अगर संभव हो, तो इस दिन पवित्र नदी में स्नान करें। इसके बाद विधिपूर्वक सूर्य देव को जल अर्पित करें। चौकी पर श्रीहरि और मां लक्ष्मी की प्रतिमा को विराजमान करें। अब उन्हें फल, फूल, वस्त्र अर्पित करें और मां लक्ष्मी को सोलह श्रृंगार की चीजें अर्पित करें। तत्पश्चात एक छोटा हवन सभी देवी देवताओं के लिए आहुतियां देकर पितरों को जल अर्पित करें

शिवजी को जलाभिषेक करें।
भगवान श्री हरि का ध्यान और जप करें।

*पूर्णिमा के दिन कौन सा काम नहीं करना चाहिए?*

इस शुभ दिन पर भूलकर भी तामसिक भोजन जैसे – अंडा, प्याज, लहसुन और मांस आदि का सेवन न करें। इस दिन शराब का सेवन करने से बचें। इस दिन अपने बाल और नाखून न काटें। पूर्णिमा के दिन अपने प्रिय व जीवनसाथी के साथ विवाद करने से बचें।

पूर्णिमा के दिन निषेध करें – संभोग, मांसाहारी भोजन, नाखून काटना, शरीर पर तेल लगाना, रात में चावल या दही खाना आदि। अमावस्या की रात को नंगे बदन सोना या आसमान के नीचे घूमना बहुत बुरा है क्योंकि इससे मनुष्य के मस्तिष्क में नकारात्मक किरणें प्रवेश करती हैं।

*पूर्णिमा के दिन भोजन*
पूर्णिमा के समय पपीता, केला, संतरा, अंगूर आदि कई फलों का सेवन किया जा सकता है। पूर्णिमा व्रत में सफेद फलाहार को प्राथमिकता देते हैं ।

पूर्णिमा सुख, शांति, वैभव और समृद्धि का प्रतीक है। पूर्णिमा का उपवास रखने से शरीर और मन पर कई सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। इस व्रत के माध्यम से मन और शरीर को आराम करने का अवसर मिलता है।

पूर्णिमा का संबंध चंद्र देव की पूजा से है। हिंदू पौराणिक कथाओं में चंद्र देव को शांति, शांति और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। पूर्णिमा के दौरान चंद्र देव को खीर अर्पित करने से मानसिक शांति और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।

भागदौड़ की जिंदगी में जो लोग इश्वर आराधना या व्रत-पूजन स्वाध्याय सत्संग अधिक करने का समय नहीं निकाल पाते हैं, वे भले ही और कोई व्रत पूजन न करें , अपितु एक पूर्णिमा के दिन ही मास में एक दिवस का उपवास और पूजन हवन कर लें तो सभी व्रतों और तप पूजन का फल उन्हें मिल जायेगा क्योंकि पूर्णिमा का दिन अत्यधिक शक्तिशाली माना गया है. इसके साथ ही कुछ विशिष्ट अनुष्ठान भी पूर्णिमा के दिन किये जाते हैं जो सभी प्रकार के दुखो, समस्याओं से छुटकारा दिला सकते हैं. नाम जप और लेखन यज्ञ के द्वारा भी अनेक संकल्प सिद्ध किये जाते हैं. इस दिन किये गये दान पुण्य का भी अधिक महत्व है क्योंकि पूर्णिमा के दिन सात्विक शक्तिया भी अधिक सक्रीय होकर आशीर्वाद देती हैं. कोई नवीन कार्य करने की प्रेरणा मिले तो उसे तुरंत लिखित रूप में उतारकर संकल्प कर लें ताकि मन और बुद्धि की चंचलता से निश्चय शिथिल न हो जाय.

इसके साथ ही रात्रि को चंद्रमा को अर्घ्य देने से सभी प्रकार के चन्द्र दोष भी दूर हो जाते हैं. अस्तु,

अतः सभी को सलाह दी जाती है कि पूर्णिमा के दिन व्रत रखें, नाम लेखन जप यज्ञ करें और अपने ईष्ट, भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी जी, उमा-महेश और चंद्रदेव सहित सतगुरु का पूजन और हवन करें। चित्त की शांति और प्रसन्नता के लिए भजन कीर्तन और ध्यान स्वाध्याय करें।

आप सब पर पूर्णिमा के पूर्ण चन्द्र की चांदनी की भांति राम-कृपा बरसाती रहें….

*जय जय राम जय सीताराम*

ऋषिश्री वरदानंद

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